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________________ જીવો અગ્નિના આરંભથી બળીને ભસ્મ થઈ જાય છે. એટલે જ અગ્નિના આરંભ છએ કાયના જીવોનો ઘાતક છે માટે પાપનું કારણ જાણીને તેનો સર્વથા ત્યાગ કરી દેવો रोय. ॥ ॐ॥ • भावार्थ :- पृथ्वीकाय तथा पृथ्वी के आश्रित और तृण, पत्र, काष्ठ, गोबर तथा कचरा आदि के आश्रित जीव एवं पतंग भ्रमर मक्खी मच्छर आदि जीव अग्नि के आरम्भ को छह काय जीवों का घातक होने से पाप का कारण जान कर उसका सर्वथा त्याग कर देना चाहिए ॥ ३७॥ तदेवं प्रभूतसत्त्वोपमर्दनकरमग्न्यारम्भं विज्ञाय मनोवाक्कायैः कृतकारितानुमतिभिश्च तत्परिहारः कार्य इति दर्शयितुमाह एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा अपरिण्णाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा परिणाया भवंति, तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं अगणिसत्थं समारंभेज्जा, णेव अण्णेहिं अगणिसत्थं समारंभावेज्जा, अगणिसत्थं समारंभमाणे अण्णे ण समणुजाणेज्जा, जस्सेए अगणिकम्मसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे ॥ ३८॥ त्ति बेमि ॥ . अत्र शस्त्रं समारभमाणस्य इत्येते आरम्भा अपरिज्ञाता भवन्ति, अत्र शस्त्रं असमारभमाणस्य इत्येते आरम्भाः परिज्ञाता भवन्ति, तत् परिज्ञाय मेधावी नैव स्वयम् अग्निशस्त्रं समारभेत, नैव अन्यैः अग्निशस्त्रं समारम्भयेत्, अग्निशस्त्रं समारभमाणान् अन्यान् न समनुजानीयात्, यस्यैते अग्निकर्मसमारम्भाः परिज्ञाता भवन्ति स खलु मुनिः परिज्ञातकर्मेति ब्रवीमि ॥ ३८ ॥ .. अन्वयार्थः- पूर्ववत्, सूत्र नं.30 ना अनुसार अन्वयार्थ सम देवो. ભાવાર્થ :- સૂત્ર નં. ૩૦ માં અપકાયનું વર્ણન કરેલ છે અને આ સૂત્રમાં भनियर्नु पनि छ. ७त भेटसो ४ ३२७ . 450 सर्व अर्थ समान छे. ॥ ३८॥ . भावार्थ :- इस सूत्र का भावार्थ सूत्र नं. ३० के अनुसार है । उस सूत्र में अकाय का वर्णन किया गया है और इस सूत्र में अग्निकाय का वर्णन है, सिर्फ इतना ही फर्क है । बाकी सारा अर्थ समान है ॥ ३८॥ श्री आचारांग सूत्र | 000000000000000000000000000७( ३१
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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