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હતા અને બજારમાં દુકાન આદિમાં રહ્યા હોય ત્યારે શસ્ત્રધારી ગ્રામરક્ષકો દ્વારા ઉપસર્ગ થતા હતા. તથા ક્યારેક ક્યારેક એકાંત સ્થાનમાં રહેતા હતા ત્યારે કોઈ સ્ત્રી भने पु३१ वा ५स यता उता ॥ ८॥
-આ લોકમાં દુઃખ આપવાવાળા દંડ પ્રહાર આદિ પ્રતિકૂલ અને પરભવમાં દુઃખ આપવાવાળા સ્ત્રી આદિથી થયેલ અનુકૂલ, આમ બન્ને પ્રકારના પરિષદોને તથા મનુષ્ય – તિર્યંચ અને દેવાદિ કૃત પરિષહ - ઉપસર્ગોને પ્રભુ સમભાવપૂર્વક સહન કરતા હતા. સુગંધ અને દુર્ગધ તથા મધુરશબ્દ અને કઠોરશબ્દ આ બધાને એક સમાન वि.२ २हित यित्तथी साउन २al edu॥ ८ ॥
___ भावार्थः- जम्बूस्वामी अपने गुरु श्री सुधर्मास्वामी से पूछते है कि हे भगवान् ! प्रभु महावीरस्वामी ने जैसी शय्या और आसनादि का सेवन किया था उन शय्या और आसन आदि के विषय में कृपा कर आप मुझ से कहिये ॥१॥ - भगवान महावीर स्वामी कभी सूने घर, सभा, प्याऊ और दूकान में निवास करते थे और कभी बढ़ई और लुहार के कार्य करने के स्थान में और मञ्च के ऊपर रखे हुए तृणों के नीचे निवास करते थे ॥२॥
. भगवान् महावीर स्वामी अवसर के अनुसार कभी धर्मशाला में, कभी बगीचे में बने हुए मकान में, कभी नगर में, कभी श्मशान में, कभी सूने घर में और कभी वृक्ष के नीचे निवास करते थे ॥३॥
• श्रमण भगवान् महावीर स्वामी तेरह वर्ष से कुछ कम समय तक इन पूर्वोक्त श्मशान, सूने घर, वृक्षमूल आदि स्थानों निवास करते हुए कठिन तपस्या करते थे। वे रात दिन संयम के अनुष्ठान में लगे रहते थे किन्तु कभी प्रमाद का सेवन नहीं करते थे। उनका चित्त सदा समाधिस्थ रहता था। इस प्रकार वे धर्म ध्यान शुक्ल ध्यान का चिन्तन करते थे ॥४॥ . .
___ समस्त प्रमादों से रहित भगवान् निद्रा का सेवन भी नहीं करते थे । वे सदा अपनी आत्मा को शुभ अनुष्ठान में प्रवृत्त रखते थे किन्तु सोने की कभी इच्छा तक नहीं करते थे ॥५॥
भगवान् महावीर स्वामी के चित्त में निद्रा प्रमाद न था । वे समझते थे कि निद्रा प्रमाद संसार भ्रमण का कारण होता है । यदि कभी निद्रा प्रमाद का उदय हो आता तो भगवान् उसकी निवृत्ति के लिए शीतकाल की रात में अपने स्थान से बाहर निकल कर और वहीं कुछ टहल कर ध्यान में स्थित हो जाते थे ॥६॥ ... जहाँ भगवान् ठहरते थे वहाँ शीत, ऊष्ण, अनुकूल और प्रतिकूल अनेक प्रकार के भयंकर उपसर्ग हुए। सूने घर में ठहरने पर सर्प और नकुल आदि द्वारा तथा श्मशान में गीध और श्रृगाल आदि मांसभक्षी प्राणियों द्वारा अनेक भयंकर उपसर्ग हुए ॥७॥
सूने घर में ठहरने पर चोर और पारदारिक आदि द्वारा उपसर्ग दिये जाते थे और बाजार में दूकान आदि पर ठहरने पर शस्त्रधारी ग्राम रक्षकों द्वारा उपसर्ग दिये जाते थे तथा कभी-कभी एकान्त स्थान में ठहरने पर किसी स्त्री और पुरुष द्वारा उपसर्ग दिये जाते थे ॥८॥
____ इस लोक में दुःख देने वाले दण्ड प्रहार आदि प्रतिकूल और पर भव में दुःख देने वाले स्त्री आदि से किये हुये अनुकूल इन दोनों प्रकार के परीषहों को तथा मनुष्य और तिर्यञ्चकृत और देवादिकृत परीषह उपसर्गो
श्री आचारांग सूत्र 000000000000000000000000000७(३२७