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________________ शस्त्रपरिज्ञानामक प्रथम अध्ययन प्रथम उद्देशकः । श्री सुधर्मा जम्बूमाचष्टे यथा : सूर्य में आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं इहमेगेसि णो सण्णा भवइ ॥ १॥ श्रुतं मया आयुष्मन् ! तेन भगवता एवमाख्यातम् इह-संसारे एकेषां नो संज्ञा-ज्ञानं भवति । 'आमुसंतेण' 'आवसंतेणं' चेति पाठान्तरद्वयमाश्रित्य-आमृशता सेवमानेन स्पृशता भगवत्पादारविन्दम् आवसता च तदन्तिके इत्यर्थः । अनेन गुरुकुलवासः प्रथमाचार उपदिष्ट इति । अन्वयार्थः- श्री सुघमास्वामी स्वयंना शिष्य स्वामीने 53 छ ... आउसं - मायुष्मन् शिष्य ! में - में सुयं - Aiमण्यु छ तेणं - ते भगवया - प्रभु महावी२२वाभीमे एवं - २मा प्ररे अक्खायं - ३२मावेदा छ 3 इहं - 20 लोभ एगेसि - 515 प्रायोंने सण्णा - संsu - ALL णो - नथी भवइ - eोत.. . भावार्थ :- हे आयुष्मन् शिष्य ! में महावीरस्वामी पासेथी समण्यु छ , ४ भारे ३२मायुं छ. मा सोsi 32415 प्रायोने संsu (न) नथी होती ॥१॥ भावार्थ :- श्री सुधर्मास्वामी स्वयं के शिष्य को कहते है कि, हे शिष्य ! मैंने सुना है, वह प्रभु महावीरस्वामीने यह फरमाया था की इस लोक में कोई प्राणियों को संज्ञा (ज्ञान) नहीं होती है ॥ १ ॥ .. निषिद्धसंज्ञामाश्रित्याऽऽह तंजहा - पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ .. वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्डाओ वा दिसाओ .. आगओ अहमंसि, अहे दिसाओ वा आगओ अहमंसि, . अण्णयरीओ वा दिसाओ वा अणुदिसाओ वा आगओ ... अहमंसि, एवमेगेसिं णो णायं भवइ ॥२॥ की आचारांग सूत्र 0000000000000000000000000000( १
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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