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भावार्थः- श्री सुधर्मास्वामी अपने शिष्य को सम्बोधित कर कहते हैं कि हे शिष्य ! अब मैं धूतवाद का कथन करूँगा । आठ प्रकार के कर्मों को झड़काना धूत कहलाता है । इस जगत् में प्राणी अपने पूर्वकृत कर्मो के अनुसार नाना प्रकार के कुलों में उत्पन्न होते हैं । वे पहले तो माता पिता के शुक्र और शोणित के संयोग से उत्पन्न होकर सात दिन तक कलल रूप में और इसके पश्चात सात दिन तक अर्बुद रूप में फिर अर्बुद से पेशी रूप में और पेशी से घनरूप में उत्पन्न होते हैं । इसके पश्चात् उनके सम्पूर्ण अङ्ग और उपाङ्ग, नाड़ियाँ, शिर, रोम आदि बन कर तैयार होते हैं। फिर बालक रूप में जन्म लेते हैं फिर बड़े होकर वे धर्म कथा को सुनकर तथा आचारादि शास्त्रों को पढ़ कर बढ़े हुए परिणाम वाले होकर प्रव्रज्या धारण करते हैं फिर वे गीतार्थ बन कर आत्मकल्याण करते हैं ॥१७९॥ अभिसम्बुद्धं च प्रविजिषुमुपलभ्य यनिजाः कुर्युस्तदर्शयितुमाह -
तं परक्कमंतं परिदेवमाणा मा णे चयाहि इइ ते वयंति छंदोवणीया अल्झोववण्णा अक्कंदकारी जणगा रुयंति, अतारिसे मुणी ण य ओहंतरए जणगा जेण विप्पजढा, सरणं तत्थ णो समेइ, कहं णु णाम से तत्थ रमइ ? एयं णाणं सया समुणवासिज्जासि
त्ति बेमि ॥ १८०॥ तं मुमुखं परिदेवमानाः विलपन्तो ‘माऽस्मान् परित्यज' इति ते स्वजना वदन्ति । किं चापरं वदन्तीत्याह - वयं तव छन्दोपनीताः त्वयि च अध्युपपत्राः । एवम् आक्रन्दकारिणो जनका जना वा रूदन्ति । एवं च वदेयुर्न तादृशो मुनिर्भवति, न च स ओघं भवौघं तरति जनकाः मातापित्रादयो येन विप्रत्यक्ताः । एवं सत्यपि मुमुक्षुर्बन्धुवर्गं शरणं तत्राऽवसरे न समेति-गच्छति । कथं नु नामाऽसौ तत्र गृहवासे रमते ? एतद् ज्ञानं सदा समनुवासयेरिति ब्रवीमि ॥ १८० ॥ ___ अन्वयार्थ :- परक्कमंतं - महापु३षोन भागथा ४१५ माटे उद्यभवत थयेदा त - ते ५३५ना प्रति - त२६ परिदेवमाणा - तेन। माता-पितule २४ता मे ते - ते इइ - मा प्र1रे वयंति - 53 छ । तमो णे - ममोने मा - नही चयाहि - छो32, अक्कंदकारि - मान-२४ता ४२ता मेवा जणगा - माता-पिता रुयंति - ३४न ४२ छ भने 53 छ । छंदोवणीया - अभी तमारी 5291न। मनुसार यस छीथे भने अल्झोववण्णा - તમારા ભરોસે રહેવાવાળા છીયે, તે પ્રમાણે પણ કહે છે કે પાખંડિયોના કહેણમાં
भावाने जेण - हे जणगा - माता-पितानो विष्पजढा - त्या शहापो छे. अतारिसे मुणी - भावो मुनि नथी जो तो य - भने ते ओहं - संसारने ण तरए - ५४२ ४३॥ શકતો નથી, તેના આ પ્રકારના કથનને સાંભળીને પણ સંસારના સ્વરૂપને જાણવાવાળો ५३५ तत्थ - तनी ते पातने सरणं ण समेइ - स्वी51२ ४२तो नथी, १२५. 3 से - ते
(२१६)OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOD | श्री आचारांग सूत्र