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________________ भने आगई - भागतिने परिण्णाय - 2ीने णावकंखइ - संसारमानी ॥२९॥नी ઈચ્છા કરતો નથી. (15 प्रतिभा - इत्थ विरमिज्ज वेयवी ना ४२या विवेगं किट्टइ वेयवी ५। ७.) ભાવાર્થ :- આગમોના રહસ્યોને જાણવાવાળા પુરૂષ આશ્રવોનો નિષેધ કરવા માટે પ્રવજ્યા ધારણ કરીને શુદ્ધ સંયમનું પાલન કરે છે. તે સ્વયંની પૂજા-પ્રતિષ્ઠા આદિની ઈચ્છા કરતા નથી. તેઓ ભવભ્રમણના કારણોને જાણીને તેનો ત્યાગ કરી દે છે. આવા મહાપુરૂષ ઘાતકર્મોનો ક્ષય કરી કેવલજ્ઞાન ઉપાર્જન કરે છે અને સમસ્ત (सqui) र्भान. १५ रीने सिद्धपहने प्राप्त २ छ. ॥ १६८ ॥ भावार्थः- आगमो के रहस्य को जानने वाला पुरुष आस्रवों का निरोध करने के लिए प्रव्रज्या धारण करके शुद्ध संयम का पालन करता है। वह पूजा प्रतिष्ठा की इच्छा नहीं करता है । वह भव भ्रमण के कारणों को जान कर उनका त्याग कर देता है । ऐसा महापुरुष घाती कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान उपार्जन करता है और समस्त कर्मों का क्षय करके सिद्ध पद को प्राप्त करता है ॥१६९॥ ... तनिराकरणे च यत्स्यात्तदाह - अच्चेइ जाइमरणस्स वट्टमगं विक्खायरए, सब्बे सरा णियटुंति, तक्का तत्थ ण विज्जइ, मई तत्थ ण गाहिया, ओए, अप्पइट्ठाणस्स खेयण्णे, से ण दोहे ‘ण हस्से ण वट्टे ण तंसे ण चउरंसे ण परिमंडले, ण किण्हे ण नीले ण लोहिए ण हालिद्दे ण सुक्किल्ले, ण सुरभि गंधे ण दुरभि गंधे, ण तित्ते ण कडुए ण कसाए ण अंबिले ण महुरे ण लवणे, ण कक्खडे ण मउए ण गुरुए ण लहुए ण सीए ण उण्हे ण णिद्धे ण लुक्खे ण काउ ण रूहे ण संगे, ण इत्थी ण पुरिसे ण अण्णहा, परिणे सण्णे, उवमा ण विज्जइ, अरूवी सत्ता, अपयस्स पयं णत्थि ॥ १७० ॥ अत्येति जातिमरणस्य वर्म-मार्ग व्याख्यातरतः मोक्षरतः । मुक्तात्मा किम्भूत इति चेत्, न की आचारांग सूत्र 9000000000000000000000000000(२
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
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