SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૩ ત્રીજા નંબરમાં સરોવર છે, જેમાંથી પાણી બહાર નીકળતું નથી, પણ બહારથી પાણી આવે છે જેમ લવણસમુદ્ર-કાલોદધિસમુદ્ર, ઉદાહરણ યથાલદિક આદિ विशेष व्रतधारी... ૪ ચોથા નંબરનું સરોવર છે. જેમાંથી પાણી બહાર નીકળતું નથી અને નથી બહારથી પાણી આવતું. જેમ અઢી દ્વીપના બહારના સમુદ્ર, ઉદાહરણ પ્રત્યેક शुद्ध, स्वयंजुद्ध माहि... ॥ १६०॥ भावार्थः- यहाँ आचार्य को तालाब की उपमा दी गई है। (१) एक तालाब ऐसा होता है जिसमें से जल निकलता है और बाहर से आता भी है। (२) दूसरा वह है जिसमें से पानी निकलता ही है किन्तु आता नहीं है। (३) तीसरा वह है जिसमें से पानी निकलता नहीं है किन्तु बाहर से आता है । (४) चौथा वह है जिसमें से पानी न तो निकलता ही है और न बाहर से आता ही हैं। ये चार प्रकार के तालाब होते हैं। इसी तरह आचार्य भी चार प्रकार के होते हैं। प्रथम श्रेणी के तालाब के समान जो आचार्य ज्ञान का आदान और प्रदान दोनों करते हैं उन्हीं का यहाँ अधिकार है । जिस प्रकार तालाब निर्मल जल से परिपूर्ण होता है उसी प्रकार आचार्य भी पांच प्रकार के आचार, आठ प्रकार की सम्पदा और ज्ञानादि से परिपूर्ण होते हैं । वे स्वयं प्राणियों की रक्षा करते हैं और अहिंसा का उपदेश देकर दूसरों से भी रक्षा करवाते हैं । वे सब प्रकार से. इन्द्रिय और मन की गुप्ति से रक्षित होते हैं। .... क्रमशः उदाहरण इस प्रकार हैं - . १. गङ्गा प्रपात कुण्ड । २. पद्मद्रह - गङ्गा का उद्गम स्थान । ३. लवण समुद्र, कालोदधि समुद्र । ४. अढाई द्वीप के बाहर के समुद्र । . इन चार तालाबों के समान चार आचार्यों के उदाहरण - . . १. गणधर देव तथा उनके पाटानुपाट आचार्य । .. २. तीर्थङ्कर भगवान् । ३. यथालन्दिक आदि विशेष व्रतधारी । ४. प्रत्येक बुद्ध, स्वयं बुद्ध आदि । ॥१६०॥ . ' आचार्याधिकारं परिसमाप्य विनेयवक्तव्यतामाह ____ वितिगिच्छासमावण्णेणं अप्पाणेणं णो लहइ समाहिं, सिया वेगे अणुगच्छंति असिया वेगे अणुगच्छंति, अणुगच्छमाणेहिं अणणुगच्छमाणे कहं ण णिविज्जे ? ॥ १६१ ॥ |श्री आचारांग सूत्र 0000000000000000000000000000(१९१
SR No.005843
Book TitleAcharang Sutram Pratham Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikramsenvijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_acharang
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy