________________
શ્રી. સિદ્ધહુમચન્દ્રશબ્દાનુશાસનમૂત્રાકારાધનુક્રમણિકા [ ૫૮૯
सूत्राङ्कः ।
सूत्रम् । दंशसञ्जः शवि ॥ ४-२-४९ ॥ दंशस्तृतीयया ।। ५-४-७३ ॥ दंशेस्त्रः ।। ५-२-९० ॥ दक्षिणाकडङ्गर० ॥६-४-१८१॥ दक्षिणापश्चा० ॥ ६-३-१३ ॥ दक्षिणेर्मा० ॥ ७-३-१४३ ॥ दक्षिणोत्तरा० ॥ ७२-११७ ॥ दगुकोशल० ॥ ६-१-१०८ ॥ दण्डादेयः ॥ ६-४-१७८ ॥ दण्डहस्ति ॥ ७-४-४५ ॥ दत् ॥ ४-४-१० ॥ दध्न ईकण ॥ ६-२-१४३ ॥ दध्यस्थि-न् ॥ १-४-६३ ॥ दध्युरः- लेः ॥ ७-३-१७२ ॥ दन्तपादना० ॥ २-१-१०१ ॥ दन्तादुन्नतात् ॥ ७-२-४० ॥ दम्भः ||४-१-२८॥ दम्भोधी ॥ ४-१-१८ ॥ दयायास्कासः ॥ ३-४-४७ ॥ दरिद्रोऽयन्यां वा ॥४-३-७६॥ दर्भकृष्ण ०ि ॥ ६-१-५७ ॥ दशनावोदै-थम् ॥ ४-२-५४ ॥ दशैकादशादिकश्च ॥६-४-३६॥
सूत्रम् ।
सूत्राङ्क । त्यदाद्यन्य च ॥ ५-१-१५२ ॥ स्यामेन ते ॥ २-१-३३ ॥ त्यादिसर्वादेः ॥ ७-३-२९॥ त्यादेः सा न ॥ ७-४-९१ त्यादेश्व पप् ॥ ७-३-१० ॥ त्यादौ क्षेपे ॥ ३-२-९२६ ॥ त्रने या ॥ ४-४-३ ॥ त्रन्त्यस्वरादेः ॥ ७-४-४३ ॥ पुजतोः । ६-२-३३ ॥
त्रप् च ॥ ७-२-९२॥
सिगृधि० ॥ ५-२-३२ ॥ त्रिककुद्धिरौ ॥ ७-३-१६८॥ त्रिचतुरसू० ॥ २-१-१॥ त्रिंशद्विशते ॥ ६-४-१२९ ॥ त्राणि त्रीण्यन्य० ॥३-३-१७॥ स्तु च ॥ ७-१-१६६ ॥ स्त्रयः ॥ १-४-३४ ॥ चत्वारिंशम् ॥ ६-४-१७४॥ त्वते गुणः ॥ ३-२-५९ ॥ त्वमहं कः ॥ २-१-१२ ॥ त्वमौ प्र-न् ॥ २-१-११ ॥ त्वे ॥ २-४-९०० ॥ त्वे वां ॥ ६-१-२६ ॥ थे वा ॥ ४-९२९ ॥ थो न्थ् ॥ १-४-७८ ।।
दवाङः ॥ ५-१-७८ ॥ दस्ति ॥ ३-२-८८ ॥