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५८४ | सिद्धहंग - जालापमोधिना
सूत्रम् ।
सूत्राङ्क ।
जण्टपण्यात् ॥ ६-१-८२ ॥ जनशो न्यु० ॥ ४-३-२३ ॥ जपजभदह० ॥ ४-१-५२ ॥ जपादीनाम् ॥ २-३-१०५ ॥ जभः स्वरे ॥ ४-४-१०० ॥ जम्ब्वा वा ॥ ६-२-६० ॥ जयिनि च ॥ ६-३-१२२ ॥ जरत्यादिभिः ॥ ३-१-५५ ॥ जरसो वा ॥ १-४-६० ॥ जराया च ॥ ७-३-९३ ॥ जराया वा ॥ २-१-३ ॥ जस इः ॥ १-४-९ ॥ जस्येदोत् ॥ १-४-२२ ॥ जविशे-न्ये ॥ २-१-२६ ॥ जागुः ॥ ५-२-४८ ॥ जागुः किति ॥ ४-३-६॥
जागुरश्च ॥ ५-३-१०४ ॥ जागुवि ॥ ४-३-५२ ॥ जाग्रुपसमि० ॥ ३-४-४९ ॥ जा ज्ञाजनो० ॥ ४-२-१०४ ॥ जातमहद्० ॥ ७-३-९५॥ जातिकाल० || ३-१-१५२ ॥ जातिश्च णि० ॥ ३-२-५१ ॥ जातीयैकार्थे० ॥ ३-२-७० ॥ जातुपद्य० ॥ ५-४-१७ ॥
सूत्राङ्क |
सूत्रम् । जाते ॥ ६-३-९८ ॥ जातेः सम्पदा० ॥७-२-१३१॥ जातेरयान्त० ।। २-४-५४ ॥ जतेरीयः ॥ ७३-१३९ ॥ जातौ ॥ ७-४-५८ ॥ जातौ राज्ञः ॥ ६-१-९२ ॥ जात्याख्यायां० ॥२-२-१२१॥ जायापतेश्चि० ॥ ५-१-८४ ॥ जायाया जानिः ॥ ७-३-१६४॥
जासनाट० ॥ २-२-१४ ॥ जिघतेरि: ।। ४-२-३८ ॥ जिविपून्यो० ॥ ५-१-४३ ॥ जिह्वामूला० ॥ ६-३-१२७ ॥ जीण्टक्षि० ।। ५-२-७२ ॥ जीर्णगोमूत्रा० ॥ ७-२-७७ ॥ जीवन्त पर्वताद्वा ॥ ६-१-५८ ॥ जी विकोपनि० ॥ ३-१-१७ ॥ जीवितस्य सन् ॥६-४-१७०॥ जृभ्रमवम० ॥ ४-१-२६॥ नृ॒वश्चः तवः ॥ ४-४-४१ ॥ नृषोऽतृः ॥ ५-१-१७३ ॥ जेर्गि: सन्० ॥ ४-१-३५ ॥ ज्यश्चयपि ॥ ४-१-७६ ॥ ज्यायान् ॥ ७-४-३६॥ ज्याव्यधः ॥ ४-१-८१ ॥