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શ્રી સિદ્ધહેમચન્દ્રશબ્દાનુશાસનસૂત્રાકાગદ્યનુક્રમણિકા [ ૧૭૯
सूत्रम् ।
सूत्राङ्क ।
क्लीचे ॥ २-४-९७ ॥ कीचे कः ॥ ५-३-१२३ ॥
कीचे वा ॥ २-१-९३ ॥ क्लेशादिभ्यो० ॥ ५-१-८१ ॥ क्वकुत्राह ॥ ७-२-९३ ॥ क्वचित् ॥ ५-१-१७१ ॥ क्वचित् ॥ ६-२-१४५ ॥ कचित्तुर्यात् ॥ ७-३-४४ ॥ कचित्स्वार्थे ॥ ७-३-७ ॥ कसुमतौ च ॥ २-१-१०५ ॥ किप् ॥ ५-१-१४८ ॥ क्विक्वृत्तेर० ॥ २-१-५८ ॥ हामात्रतस० ॥ ६-३-१६ ॥ कौ ॥ ४-४-१२० ॥ क्षत्रादियः ॥ ६-१-९३ ॥ अय्यजय्यौ० ॥ ४-३-९० ॥ क्षिपरटः ॥ ५-२-६६ ॥ क्षिप्राशंसार्थ० ॥ ५-४-३॥ क्षियाशीः प्रेषे ॥ ७-४-९२ ॥ क्षीरादेयण ॥ ६-२-१४२ ॥ क्षुत्तृड्गर्धे० ॥ ४-३-११३ ॥ क्षुद्रकमालवा० ॥ ६-२-११ ॥ क्षुद्राभ्य० ॥ ६-१-८० ॥ क्षुधक्लिश० ॥ ४-३-३१ ॥ श्रुधवस० ॥ ४-४-४३ ॥
सूत्राङ्क ।
सूत्रम् । क्षुब्धविरिब्ध० ॥ ४-४-७० ॥ क्षुभ्नादीनाम् ॥ २-३-९६॥ थुश्रोः ॥ ५-३-७१ ॥
क्षेः क्षीः ॥ ४-३-८९ ॥ क्षेः क्षी चा० ॥ ४-२-७४ ॥ क्षेत्रेऽन्य-यः ॥ ७-१-१७२ ॥ क्षेपातिग्र - याः ॥ ७-२-८५ ।। क्षेपे च० ।। ५-४-१८ ॥ क्षेपेऽपि ॥ ५-४-१२ ॥ क्षेमप्रिय - खाण् ॥ ५-१-१०५ ॥ शुषिपचो० ॥ ४-२-७८ ॥ खनो उदरेके० ॥ ५-३-१३७॥ खलादिभ्यो० ॥ ६-२-२७ ।। खारीकाक० ।। ६-४-१४९ ॥ खार्या वा ॥ ७-३-१०२ ॥ . खितिखीती० ॥ १-४-३६ ॥ खित्यनव्यया० ॥ ३-२-१११ ॥ खेयमृषोद्ये ॥ ५-१-३८ ॥ ख्णम् चाभी० ॥ ५-४-४८ ॥ ख्यागि ।। १-३-५४ ॥ ख्याते दृश्ये ॥ ५-२-८ ॥ गच्छति पथि० ॥ ६-३-२०३ ।। गडदवादे ये ।। २-१-७७ ।। गडवादिभ्यः ॥ ३-१-१५६ ॥ गणिकाया ण्यः ॥ ६-२-१७ ।।