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.. श्री सिमित्य-२२० दानुशासनसूत्राराधनु माणा [ १५७
सूत्रम्। सूत्राङ्क। । सूत्रम्। सूत्राङ्क । कुषिरजेाप्ये० ॥३-४-७४॥ | कृपाहृदयादालः ॥७-२-४२॥ कुसीदादिकट् ॥ ६-४-३५ ॥ । कृभ्वस्तिभ्या०॥७-२-१२६ ॥ कुलादुद्रजोद्वहः ॥५-१-१२२॥ कृवृषिमृजि० ॥ ५-१-४२ ॥ कुलाभ्रकरी० ॥ ५-१-११० ॥ कृशाश्चक-दिन् ॥ ६-३-१९० ॥ कृगः खनट० ॥ ५-१-१२९ ॥ कृशाश्वादेरीयण ॥ ६-२-९३॥ कृगः प्रतियत्ने ॥२-२-१२॥ | कृष्यादिभ्यो० ॥ ७-२-२७ ॥ कृगः शश्च चा ॥५-३-१०० ॥ | कृतः कीर्तिः ॥ ४-४-१२२ ॥ कृगः सुपुण्य० ॥५-१-१६२ ॥. केकयामत्रयु ॥ ७-४-२॥ कृगो नवा ॥ ३-१-१० ॥ केदारापण्यश्च ॥ ६-२-१३ ॥ कृगो यि च ॥ ४-२-८८ ॥ केपलमामक० ॥२-४-२९ ॥ कृगोऽव्ययेना० ॥५-४-८४॥ केवलस-रौ ॥ १-४-२६ ॥ कृगग्रहो-चात ॥५-४-६१ ॥ केशाद्वः ॥ ७-२-४३ ॥ कृगतनादेरुः ॥ ३-४-८३ ॥ केशाद्वा ॥ ६-२-१८ ॥ कृतचूतनुत० ॥ ४-४-५० ॥ केशे वा ॥ ३-२-१०२ ॥ कृताद्यैः ॥२-२-४७ ॥ कोः कत्० ॥ ३-२-१३० ॥ कृतास्मरणा० ॥ ५-२-११ ॥ कोटरभिश्रक० ॥ ३-२-७६ ॥ कृति ॥ ३-१-७७ ॥
कोऽण्यादेः ॥ ७-२-७६ ॥ कृते ॥ ६-३-१९२ ॥
कोपान्त्याच्चाण ॥ ६-३-५६ ॥ कृत्यतुल्या० ॥ ३-१-११४ ॥ कोऽश्मादेः ॥ ६-३-९७ ॥ कृत्येऽवश्यमो० ॥ ३-२-१३८ ॥ कौण्डिन्याग० ॥६-१-१२७ ॥ कृत्यस्य वा ॥ २-२-८८ ॥ कौपिञ्जल० ॥ ६-३-१७१ ॥ कृत्संगति-पि ॥ ७-४-११७ ॥ कौरव्यमाण्डूका० ॥२-४-७० ॥ कृद्येनावश्यके ॥३-१-९५ ॥ कौशेयम् ॥ ६-२-३९ ॥ कृपःश्वस्तन्याम् ॥ ३-३-४६ ॥ विडति यि० ॥ ४-३-१० ॥ .39