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શ્રી સિદ્ધ્હેમચન્દ્રરાખ્યાનુશસનસૂત્રાકાશાનુક્રમણિકા પછી
सूत्रम् । सूत्राङ्क । उपसर्गाद्दवृ० ॥ ५-२-६१ ॥ उपाजेऽन्वाजे ॥ ३-१-१२ ॥ उपाजनुनी वि० ॥ ६-३-१३९॥ उपात् ॥ ३-३-५८ ॥ उपात् किरो० ॥ ५-४-७२ ॥ उपात्स्तुतौ ॥ ४-४-१०५ ॥ उपात्स्थः ॥ ३-३-८३ ॥ उपाद्भूपासमवाय०॥४-४-९२॥
उपान्त्य ॥ ४-३-३४ ॥
उपान्त्यस्यासमा० ॥४-२-३५॥ उपान्वध्याङ्क्सः ॥२-२-२१॥ उपायाद् ह्रस्वश्च ॥७-२-१७० ॥ उपेनाधिकिनि ॥ २-२-१०५ ॥ उप्ते ॥ ६-३-११८ ॥ उभयाद् द्युस् च ॥ ७३-९९॥ मोर्णा ॥ ६-२-३७ ॥ उरसोऽग्रे ॥ ७-३-११४ ॥ उरसो याणौ ॥ ६-३-१९६ ॥ उवर्णयुगादेर्यः ॥ ७-१--३० ॥ वर्णात् ॥ ४-४-५८ ॥ उवणादावश्यके ॥ ५-१-१९॥ उवर्णादिकण् ॥ ६-३-३९ ॥ उश्नोः ॥ ४-३-२ ॥ उपासोषसः || ३-२-४६॥ उष्ट्रमुखादयः ॥ ३-१-२३ ॥
सूत्राङ्क ।
सूत्रम् । उष्ट्रादकञ् ॥ ६-२-३६ ॥ उष्णात् ॥ ७-१-१८५ ॥ उष्णादिभ्यः ॥ ६-३.३३ ॥ ऊङः ॥ ३-२-६७ ॥ ॐ चोञ् ॥ १-२-३९ ॥ ऊटा ॥ १-२-१३ ॥ ऊढायाम् ॥ २-४-५१ ॥ ऊदितो वा ॥ ४-४-४२ ॥ ऊहुषो णौ ॥ ४-२-४० ॥
ऊनः ।। २-४-७ ॥
ऊनार्थपूर्वाद्यैः ॥ ३-१-६७ ॥ ऊर्जा बिन्वला० ॥ ७–२–५' ॥ ऊण शुभमो० ॥ ७-२-१७॥ ऊर्ध्वात्पूः शुषः ॥ ५-४-७० ॥ ऊर्ध्वादिभ्यः कर्तुः ॥५-१-१३६॥ ऊर्ध्वाद्रिरिष्टा ॥ ७२-११४॥ ऊर्याद्यनुकरण० ॥ ३-१-२॥ कलति वा ॥ १-२-२ ॥ ऋशृदृप्र ॥ ४–४–२० ॥ ऋक्पूः पथ्य० ॥ ७-३-७६ ॥ ऋक्सामर्थ्य० ॥ ७-३-९७ ॥ ऋगृ द्विस्वर० ॥ ६-३-१४४ ॥ ऋचः शसि ॥ ३-२-९७ ॥ ऋचि पादः ॥ २-४-१७ ॥ ऋणाद्धेतोः ॥ २-२-७६ ॥