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શ્રીસિદ્ધહેમચન્દ્રશબ્દાનુશાસન ભાગ-૧
सिद्धहेमशब्दानुशासन व बृहन्यास की उपादेयता
डॉ. विजयपाल शास्त्री (साहित्य - व्याकरणाचार्य) आचार्य एवं अध्यक्ष (साहित्य - विभाग ) राष्ट्रीयसंस्कृतसंस्थानम्, वेदव्यासपरिसर, बलाहर, निकट गरली (कांगड़ा) हिमाचल प्रदेश-१७७१.०८.
भारतीय मनीषियों ने शब्दज्ञानं, उसके साधु प्रयोग व तत्प्रतिपादक व्याकरण शास्त्र को ऐहिक कल्याण के साथ परम निःश्रेयस अर्थात् मोक्ष का भी साधक माना है
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तमक्षरं ब्रह्म परं पवित्र गुहाशयं सम्यगुशन्ति विप्राः ।
स श्रेयसा चाभ्युदयेन चैव सम्यक् प्रयुक्तः पुरुषं युनक्ति ॥ ( आपिशलि-शिक्षारम्भे ) इसका भाव है कि शब्द तत्त्व परम पवित्र व बुद्धिगुहा में स्थित है । विद्वान् लोग शिक्षा, व्याकरण आदि द्वारा उसका सम्यक् ज्ञान प्राप्त कर उचित प्रयोग करते हैं । साधु रुप प्रयुक्त शब्द (वाक्य-सन्दर्भ) पुरुष को लौकिक कल्याण व पारमार्थिक कल्याण (मोक्ष) से युक्त कर देता है ।
भर्तृहरि कहते हैं
इदमाद्यं पदस्थानं सिद्धसोपानपर्वणाम्।
इयं सा मोक्षमाणानामजिह्ना राजपद्धतिः ॥
(वाक्यपदीयम् - १.१६ )
अर्थात् व्याकरण सिद्धिसोपान के पर्वों में प्रथम पदस्थान है । मोक्षार्थियों के लिए व्याकरणाध्ययनपूर्वक शास्त्रज्ञान एवं ध्यान-साधना द्वारा विवेक वैराग्य की प्राप्ति सरल राजमार्ग है । अन्यत्र भी कहा है -
व्याकरणात् पदज्ञानं पदज्ञानादर्थनिर्णयो भवति । अर्थात् तत्त्वज्ञानं तत्त्वज्ञानात् परं श्रेयः ॥
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अर्थात् व्याकरण द्वारा शब्दज्ञान होता है, उसके द्वारा शास्त्रों का पदार्थज्ञान होता है । पदार्थज्ञान से तत्त्वज्ञान तथा तत्त्वज्ञान से परम श्रेय अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति होती है । इस प्रकार व्याकरणशास्त्र