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________________ परिशिष्ट श्री स्थानाङ्ग सूत्र सानुवाद भाग २ गणित [पृ०८५५ पं०१४] [अत्र ठाणं इत्यस्मिन् ग्रन्थे हिन्दीभाषायां तेरापंथी आचार्यश्री नथमलजीलिखितं टिप्पनमुद्धियते] प्रस्तुत सूत्र में गणित के दस प्रकार निर्दिष्ट हैं १. परिकर्म - यह गणित की एक सामान्य प्रणाली है। भारतीय प्रणाली में मौलिक परिकर्म आठ माने जाते हैं - (१) संकलन [जोड़] (२) व्यवकलन [बाकी] (३) गुणन [गुणन करना] (४) भाग [भाग करना] (५) वर्ग [वर्ग करना] (६) वर्गमूल [वर्गमूल निकालना ] (७) घन [घन करना ] (८) घनमूल [ घनमूल निकालना ] । परन्तु इन परिकर्मों में से अधिकांश का वर्णन सिद्धान्त ग्रन्थों में नहीं मिलता। ब्रह्मगुप्त के अनुसार पाटी गणित में बीस परिकर्म हैं - (१) संकलित (२) व्यवकलित अथवा व्युत्कलिक (३) गुणन (४) भागहर (५) वर्ग (६) वर्गमूल (७) घन (८) घनमूल [ ९-१३] पांच जातियाँ 1 [अर्थात् पांच प्रकार भिन्नों को सरल करने के नियम] (१४) त्रैराशिक (१५) व्यस्तत्रैराशिक (१६) पंचराशिक (१७) सप्तराशिक (१८) नवराशिक (१९) एकदसराशिक ( २० ) भाण्ड - प्रति - भाण्ड 2 | प्राचीन काल से ही हिन्दू गणितज्ञ इस बात को मानते रहे हैं कि गणित के सब परिकर्म मूलतः दो परिकर्मों-संकलित और व्यवकलित - पर आश्रित हैं । द्विगुणीकरण और अर्धीकरण के परिकर्म जिन्हें मिस्र, यूनान और अरब वालों ने मौलिक माना है। ये परिकर्म हिन्दू ग्रन्थों में नहीं मिलते। ये परिकर्म उन लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण थे जो दशमलव पद्धति से अनभिज्ञ थे | 3 २. व्यवहार - ब्रह्मदत्त के अनुसार पाटीगणित में आठ व्यवहार हैं (१) मिश्रक-व्यवहार (२) श्रेढी - व्यवहार ( ३ ) क्षेत्र-व्यवहार (४) खात-व्यवहार (५) चिति-व्यवहार (६) क्राकचिक व्यवहार (७) राशि-व्यवहार (८) छाया - व्यवहार' । पाटीगणित-यह दो शब्दों से मिलकर बना है। (१) पाटी और (२) गणित । अतएव इसका अर्थ है। गणित जिसको करने में पाटी की आवश्यकता पड़ती है । उन्नीसवीं शताब्दी के अन्ततक कागज की कमी के कारण प्रायः पाटी का ही प्रयोग होता था और आज भी गांवो में इसकी अधिकता देखी जाती है। लोगों की धारणा है कि यह शब्द भारतवर्ष के संस्कृतेतर साहित्य से निकलता है, जो कि उत्तरी भारतवर्ष की एक प्रान्तीय भाषा थी । 'लिखने की पाटी' के प्राचीनतम संस्कृत पर्याय 'पलक' और 'पट्ट' हैं, न कि पाटी। 5 'पाटी', शब्द का प्रयोग संस्कृत साहित्य में प्रायः ५वीं शताब्दी से प्रारम्भ हुआ। गणित- कर्म को कभी-कभी धूली कर्म भी कहते थे, क्योंकि पाटी पर धूल बिछाकर अंक लिखे जाते थे। बाद के कुछ लेखकों ने 'पाटी गणित' के अर्थ में 'व्यक्त गणित' का प्रयोग किया है, जिसमें कि बीजगणित से, जिसे वे अव्यक्त गणित कहते थे पृथक् समझा जाए। संस्कृत ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद हुआ तब पाटी गणित और धूली कर्म शब्दों का भी अरबी में अनुवाद कर लिया गया। अरबी के संगत शब्द क्रमशः 'इल्म - हिसाब - अलतख्त' और 'हिसाब - अलगुबार '' है। - पाटी गणित के कुछ उल्लेखनीय ग्रन्थ (१) वक्षाली हस्तलिपि ( लगभग ३०० ई०), (२) श्रीधरकृत पाटीगणित और त्रिशतिका ( लगभग ७५० ई०), (३) गणितसारसंग्रह (लगभग ८५० ई०), (४) गणिततिलक (१०३९ ई०), (५) लीलावती ( ११५० ई०), (६) गणितकौमुदी (१३५६ ई० ) और मुनीश्वर कृत पाटीसार ( १६५८ ई०) 1. पांच जातियाँ ये हैं - (१) भाग जाति (२) प्रभाग जाति (३) भागानुबन्ध जाति ( ४ ) भागापवाद जाति (५) भाग-भाग जाति ।। 2. बाह्यस्फुटसिद्धान्त, अध्याय १२, श्लोक १ ।। 3. हिंदूगणित, पृष्ठ ११८ ।। 4. बाह्यस्फुटसिद्धान्त, अध्याय १२, श्लोक १ ।। 5. अमेरिकन मैथेमेटिकल मंथली, जिल्द ३५, पृष्ठ ५२६ 6 हिन्दूगणितशास्त्र का इतिहास भाग १ : पृष्ठ ११७, ११९ ।। 411
SR No.005768
Book TitleSthanang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages484
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_sthanang
File Size12 MB
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