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श्री स्थानाङ्ग सूत्र
प्रस्तावना
सूत्र का निर्यूहण किया । 1 वीर - निर्वाण के ८० वर्ष बाद इस महत्त्वपूर्ण सूत्र की रचना हुई थी । स्वयं आ. भद्रबाहु स्वामी ने भी छेदसूत्रों की रचनाएं की थीं, उस वाचना के समय आ. भद्रबाहु स्वामी स्वयं विद्यमान थे। पर इन ग्रन्थों की वाचना के सम्बन्ध में कोई संकेत नहीं है । पण्डित श्री दलसुख मालवणिया का अभिमत है कि आगम या श्रुत उस युग में अंग-ग्रन्थों तक ही सीमित था । बाद में चलकर श्रुतसाहित्य का विस्तार हुआ और आचार्यकृत श्रुत क्रमशः आगम की कोटि में रखा गया | 2
पाटलिपुत्र की वाचना के सम्बन्ध में दिगम्बर प्राचीन साहित्य में कहीं उल्लेख नहीं है। यद्यपि दोनों ही परम्पराएं आ.भद्रबाहु स्वामी को अपना आराध्य मानती हैं। आचार्य भद्रबाहु स्वामी के शासनकाल में दो विभिन्न दिशाओं में बढ़ती हुई श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के आचार्यों की नामशृङ्खला एक केन्द्र पर आ पहुंची थी। अब पुनः वह शृङ्खला विशृङ्खलित हो गयी थी ।
द्वितीय वाचना
संकलन का द्वितीय प्रयास वीर - निर्वाण ३०० से ३३० के बीच हुआ । सम्राट खारवेल उड़ीसा प्रान्त . के महाप्रतापी शासक थे । उनका अपर नाम "महामेघवाहन" था। इन्होनें अपने समय में एक बृहद् जैन सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसमें अनेक जैन भिक्षु, आचार्य, विद्वान तथा विशिष्ट उपासक सम्मिलित हुए थे । सम्राट खारवेल को उनके कार्यों की प्रशस्ति के रूप में "धम्मराज", "भिक्खुराज", "खेमराज" जैसे विशिष्ट शब्दों से सम्बोधित किया गया है। हाथी गुफा (उड़ीसा) के शिलालेख में इस सम्बन्ध में विस्तार से वर्णन है । हिमवन्त स्थविरावली के अनुसार महामेघवाहन, भिक्षुराज खारवेल सम्राट ने कुमारी पर्वत पर एक श्रमण सम्मेलन का आयोजन किया था। प्रस्तुत सम्मेलन में महागिरि - परम्परा के बलिस्सह, बौद्धलिङ्ग, देवाचार्य धर्मसेनाचार्य, नक्षत्राचार्य, प्रभृति दो सौ जिनकल्पतुल्य उत्कृष्ट साधना करने वाले श्रमण तथा आर्य सुस्थित, आर्य सुप्रतिबद्ध, उमास्वाति, श्यामाचार्य, प्रभृति तीन सौ स्थविरकल्पी श्रमण थे। आर्या पोड़णी प्रभृति ३०० साध्वियाँ, भिखुराय, चूर्णक, सेलक, प्रभृति ७०० श्रमणोपासक और पूर्णमित्रा प्रभृति ७०० उपासिकाएँ विद्यमान थीं।
बलिस्सह, उमास्वाति, श्यामाचार्य प्रभृति स्थविर श्रमणों ने सम्राट खारवेल की प्रार्थना को सन्मान देकर गणधर भगवंत सुधर्मा स्वामि रचित द्वादशांगी का संकलन किया । उसे भोजपत्र, ताड़पत्र और वल्कल पर लिपिबद्ध कराकर आगम वाचना के ऐतिहासिक पृष्ठों में एक नवीन अध्याय जोड़ा। प्रस्तुत वाचना भुवनेश्वर के निकट कुमारगिरि पर्वत पर, जो वर्तमान में खण्डगिरि उदयगिरि पर्वत के नाम से विश्रुत है, वहाँ हुई थी, जहाँ पर अनेक जैन गुफाएं हैं जो कलिंग नरेश खारवेल महामेघवाहन के धार्मिक जीवन की परिचायिका हैं। इस सम्मेलन में आर्य सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध दोनों सहोदर भी उपस्थित थे। कलिंगाधिप भिक्षुराज ने इन दोनों का विशेष सम्मान किया था । हिमवन्त थेरावली के अतिरिक्त अन्य किसी जैन ग्रन्थ में इस सम्बन्ध में उल्लेख नहीं है । खण्डगिरि और उदयगिरि में इस सम्बन्ध में जो विस्तृत लेख उत्कीर्ण है, उससे स्पष्ट परिज्ञात होता है कि उन्होंने आगमवाचना के लिए सम्मेलन किया था। 4
1. सिद्धान्तसारमुद्धृत्याचार्यः शय्यम्भवस्तदा । दशवेकालिकं नाम, श्रुतस्कन्धमुदाहरत् ।। - परिशिष्ट पर्व, सर्ग ५, श्लोक ८५ 2. (क) जैन दर्शन का आदिकाल - पं. दलसुख मालवणिया, पृष्ठ ६ (ख) आगम युग का जैन दर्शन-पृष्ठ २७ 3 सुट्टियसुपडिबुद्धे, अज्जे दुने विते नमसामि । भिक्खुराय कलिंगाहिवेण सम्माणिए जिट्टे ।। – हिमवंत स्थविरावली, गा. १० 4. (क) जर्नल आफ दी विहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसायटी, - भाग १३, पृ. ३३६ (ख) जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग १, पृ. ८२ आचार्य - साध्वी संघमित्रा, पृ. १०-११
(ग) जैनधर्म के प्रभावक
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