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________________ प्रस्तावना श्री स्थानाङ्ग सूत्र इनमें पाँच सौ श्रमण शिक्षार्थी थे और हजार श्रमण परिचर्या करने वाले थे। आचार्य भद्रबाहु स्वामी प्रतिदिन उन्हें सात वाचना करते थे। एक वाचना भिक्षाचर्या से आते समय, तीन वाचना विकाल वेला में और तीन वाचना प्रतिक्रमण के पश्चात् रात्रि में प्रदान करते थे। दृष्टिवाद अत्यन्त कठिन था। वाचना प्रदान करने की गति मन्द थी। मेधावी मुनियों का धैर्य ध्वस्त हो गया। चार सौ निन्यानवै शिक्षार्थी मुनि वाचना-क्रम को छोड़कर चले गये। स्थूलभद्र मुनि निष्ठा से अध्ययन में लगे रहे। आठ वर्ष में उन्होंने आठ पूर्वो का अध्ययन किया। आठ वर्ष के लम्बे समय में भद्रबाहु और स्थूलभद्र के बीच किसी भी प्रकार का उल्लेख नहीं मिलता। एक दिन स्थूलभद्र से भद्रबाहु ने पूछा-'तुम्हें भिक्षा एवं स्वाध्याय योग में किसी भी प्रकार का कोई कष्ट तो नहीं है?' स्थूलभद्र ने निवेदन किया- 'मुझे कोई कष्ट नहीं है। पर जिज्ञासा है कि मैंने आठ वर्षों में कितना अध्ययन किया है? और कितना अवशिष्ट है?' भद्रबाहु ने कहा'वत्स! सरसों जितना ग्रहण किया है, और मेरु जितना बाकी है। दृष्टिवाद के अगाध ज्ञानसागर से अभी तक तुम बिन्दुमात्र पाये हो' स्थूलभद्र ने पुनः निवेदन किया-'भगवन्! मैं हतोत्साह नहीं हूं, किन्तु मुझे वाचना का लाभ स्वल्प मिल रहा है। आपके जीवन का सन्ध्याकाल है, इतने कम समय में वह विराट ज्ञान राशि कैसे प्राप्त कर सकूँगा? भद्रबाहु ने आश्वासन देते हुए कहा-'वत्स! चिन्ता मत करो, मेरा साधनाकाल सम्पन्न हो रहा है। अब मैं तुम्हें यथेष्ट वाचना दूंगा।' उन्होंने दो वस्तु कम दशपूर्वो की वाचना ग्रहण कर ली। तित्थोगालिय के अनुसार दशपूर्व पूर्ण कर लिये थे और ग्यारहवें पूर्व का अध्ययन चल रहा था। साधनाकाल सम्पन्न होने पर आर्य भद्रबाहु स्थूलभद्र के साथ पाटलिपुत्र आये। यक्षा आदि साध्वियाँ वन्दनार्थ गयी। स्थूलभद्र ने चमत्कार प्रदर्शित किया। . जब वाचना ग्रहण करने के लिए स्थूलभद्र भद्रबाहु के पास पहुँचे तो उन्होंने कहा- 'वत्स! ज्ञान का अहं विकास में बाधक है। तुमने शक्ति का प्रदर्शनकर अपने आप को अपात्र सिद्ध कर दिया है। अब तुम आगे की वाचना के लिए योग्य नहीं हो।' स्थूलभद्र को अपनी प्रमादवृत्ति पर अत्यधिक अनुताप हुआ। चरणों में गिरकर क्षमायाचना की और कहा-पुनः अपराध का आवर्तन नहीं होगा। आप मुझे वाचना प्रदान करें। प्रार्थना स्वीकृत नहीं हुई। स्थूलभद्र ने निवेदन किया-मैं पर-रूप का निर्माण नहीं करूंगा, अवशिष्ट चार पूर्व ज्ञान देकर मेरी इच्छा पूर्ण करें। स्थूलभद्र के अत्यन्त आग्रह पर चार पूर्वो का ज्ञान इस अपवाद के साथ देना स्वीकार किया कि अवशिष्ट चार पूर्वो का ज्ञान आगे किसी को भी नहीं दे सकेगा। दशपूर्व तक उन्होंने अर्थ से ग्रहण किया था और शेष चार पूर्वो का ज्ञान शब्दशः प्राप्त किया था। उपदेशमाला विशेष वृत्ति, आवश्यकचूर्णि, तित्थोगालिय, परिशिष्टपर्व, प्रभृति ग्रन्थों में कहीं संक्षेप में और कहीं विस्तार से वर्णन है। ____ दिगम्बर साहित्य के उल्लेखानुसार दुष्काल के समय बारह सहस्र श्रमणों ने परिवृत्त होकर भद्रबाहु उज्जैन होते हुए दक्षिण की ओर बढ़े और सम्राट चन्द्रगुप्त को दीक्षा दी। कितने ही दिगम्बर विज्ञों का यह मानना है कि दुष्काल के कारण श्रमणसंघ में मतभेद उत्पन्न हुआ। दिगम्बर श्रमण को निहारकर एक श्राविका का गर्भपात हो गया। जिससे आगे चलकर अर्ध फालग सम्प्रदाय प्रचलित हुआ। अकाल के कारण वस्त्र-प्रथा का प्रारम्भ हुआ। यह कथन साम्प्रदायिक मान्यता को लिए हुए है। पर ऐतिहासिक सत्य-तथ्य को लिए हुए नहीं है। कितने ही 1. श्रीभद्रबाहुपादान्ते स्थूलभद्रो महामतिः । पूर्वाणामष्टकं वषैरपाठीदष्टभिर्भृशम्।। -परिशिष्ट पर्व, सर्ग-९, श्लोक-८१ 2. दृष्ट्वा सिंहं तु भीतास्ताः सूरिमेत्य व्यजिज्ञपन् । ज्येष्ठार्य जग्रसे सिंहस्तत्र सोऽद्यापि तिष्ठति ।। -परिशिष्ट पर्व, सर्ग-९, श्लोक-८१ 3. अह भणइ थूलभद्दो अण्णं रूवं न किंचि काहामो । इच्छामि जाणिउं जे, अहं चत्तारि पुव्वाइं ।। -तित्थोगाली पइन्ना-८०० 4. जैन साहित्य का इतिहास, पूर्व पीठिका-संघभेद प्रकरण, पृ. ३७५ - पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्री, वाराणसी xviil
SR No.005768
Book TitleSthanang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages484
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_sthanang
File Size12 MB
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