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________________ F त H 21 न शा स ना य शयेालिसूत्र भाग-४ (विनय समाधि) उपक्रम नाम स्थापना द्रव्य तिनिश वृक्ष, सुवर्ण विगेरे -तेते रूपे घडी शकाय माटे ते द्रव्य विनय अनुगम निक्षेप नामनिष्पन्न निक्षेप "विनय समाधि' इति द्विपदं नाम भाव (पांच प्रकारे)* लोकोपचार अभ्युत्थान, अंजली, आसनदान, अतिथिपूजा, देवता पूजा. अर्थ श्री विनित स्वामिना भय नौकरादि दर्शन जे विनय करे ते. जिनेश्वरवडे नवम अध्ययन अनुयोगद्वार ज्ञान ज्ञान शीखे, नाम स्थापना 11 जेरीने जे भावो सर्व करे, ज्ञान थी रिक्त करे द्रव्योना कर्तव्य करे, कहेला छे ते भावो तेरी श्रद्धाथी माने ते अर्थनिर्मित अभ्यासवृत्ति, छन्दोनुवर्तन, देश-कालदान, अभ्युत्थान, ↓ आठ प्रकार ना अज्ञाने नुंगुषण संचित कमने दश्करें। ज्ञानीनवा | अंजली, आसनदान मोक्ष विनय (पाँच प्रकारे) चारि ਰੋਧੀ ਦੇ दर्शन विनय ज्ञानविजय प्रयत्न करतो 度の管想を書 आत्मा..... | कर्म न अने बांचे जूना नचा कर्म दूर करे त्यारे चारित्र विनय न न १२ स्वर्ग मोक्षने प्राप्त मध्य श्रेष्ठ नये काम हेतु जे रीते अर्थनिमित्त अभ्यासवृत्ति विगेरे छे ते ज रीते. वैश्यादि पासे रहें विगेरे: काम मारे | औप‌चारिक (२ प्रकारे) प्रतिरूपयोग व्यापार (3 प्रकाो) (22 प्रकारे) अनाशातन कायिक १. तीर्थंकर 1. अभ्युस्थान वाचिक हित 2. मित - सिद्ध . अंजली तप ७. अनुगमन विजय ८. संसाधन ★ समाधि निक्षेप दस भाँव (प्रशस्त) 'द्रव्य थी समाधि मले ने द्रव्य समाधि/दर्शन ज्ञान चारित्र तप (जेम- त्रिफला थी कनियाद न थाय / तेम- खीर अने गोल बिगेर थी। अन्य उपाय पाय अकुशलमन 2. आसनदान ३. अपुरुष निरोध ४. अभिग्रह ४. अनुविचिन्य २. कुशल ५. कृतिकर्म भाषी. मननी ६. शुश्रूषण उदीरणा मानस V ३. कुल ९. गण ५. संघ ६. क्रिया ७. धर्म 6. ज्ञानी ८. ज्ञानी १० आचार्य ११. स्थवीर १२. उपाध्याया पाणी आनेर ने चार भी गुणो-५: १. मनाशातन २. भक्ति. बहुम ४. वर्ण कीर्तन न 古 मा 31 त 121 जि न शा स ना य
SR No.005766
Book TitleDashvaikalik Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunhansvijay, Bhavyasundarvijay
PublisherKamal Prakashan Trust
Publication Year2009
Total Pages254
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_dashvaikalik
File Size6 MB
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