SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 437
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री प्रज्ञापना सूत्र भाग १ दसमं चरमाचरमपयं ठिति-भव-भासा-आणापाणु-आहार-भाव-वण्ण-गंध-रसचरिमाचरिमाई चरिमे, अचरिमे? गोयमा! सिय चरमे, सिय अचरमे, एवं निरंतरंजाव वेमाणिया। नेरइया णं भंते! गतिचरमेणं किं चरिमा अचरिमा? गोयमा! चरिमा वि अचरिमा वि, एवं निरंतरं जाव वेमाणिया। || ठितिचरिमाचरिमाइं ।।। नेरइए णं भंते! ठितीचरमेणं किं चरमे अचरमे? गोयमा! सिय चरमे, सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव वेमाणिए। नेरइया णं भंते! ठितीचरमेणं किं चरमा अचरमा? गोयमा! चरमावि, अचरमावि, एवं निरंतरं जाव वेमाणिया। || भवचरमाचरमाई ।। नेरइए णं भंते! भवचरमेणं किं चरमे अचरमे? गोयमा! सिय चरमे, सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव वेमाणिए। नेरइया णं भंते! भवचरमेणं किं चरमा अचरमा? गोयमा! चरमावि अचरमावि, एवं निरंतरं जाव वेमाणिया। || भासाचरमाचरमाइं ।। नेरइए णं भंते! भासाचरमेणं किं चरमे अचरमे? गोयमा! सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव वेमाणिए। नेरइया णं भंते! भासाचरमेणं किं चरमा अचरमा? गोयमा! चरमावि अचरमावि, एवं जाव एगिंदियवज्जा निरंतरं जाव वेमाणिया। ||आणापाणुचरमाचरमाइं ।। ... नेरइए णं भंते! आणापाणुचरमेणं किं चरमे अचरमे? गोयमा! सिय चरमे, सिय अचरमे। एवं निरंतरं जाव वेमाणिए। नेरइया णं भंते! आणापाणुचरमेणं किं चरमा अचरमा? गोयमा! चरमावि अचरमावि। एवं निरंतरंजाव वेमाणिया। || आहारचरमाचरमाई ।। नेरइए णं भंते! आहारचरमेणं किं चरमे अचरमे? गोयमा! सिय चर्भ सिय अचरमे। एवं निरंतरंजाव वेमाणिया। नेरइया णं भंते! आहारचरमेणं किं चरमा अचरमा? गोयमा! चरमावि अचरमावि, एवं निरंतरं जाव वेमाणिया। || भावचरमाचरमाइं ।। नेरइए णं भंते! भावचरमेणं किं चरमे अचरमे? गोयमा! सिय चरमे, सिय अचरमे। एवं जाव वेमाणिया। नेरइया णं भंते! भावचरमेणं किं चरमा अचरमा? गोयमा! चरमावि अचरमावि। एवं निरंतरंजाव वेमाणिया। ||वण्णचरमाचरमाइं ।। नेरइए णं भंते! वण्णचरमेणं किं चरमे अचरमे! गोयमा! सिय चरमे, सिय अचरमे। एवं निरंतरंजाव वेमाणिया। नेरइया णं भंते! वण्णचरमेणं किं चरमा अचरमा? गोयमा! चरिमा वि अचरिमा वि। एवं निरंतरं जाव वेमाणिया। || गंधचरमाचरमाइं ।। नेरइए णं भंते! गंधचरमेणं किं चरमे अचरमे? गोयमा सिय चरमे, सिय अचरमे। एवं निरंतरंजाव वेमाणिया। नेरइया णं भंते! गंधचरमेणं किं चरमा अचरमा? गोयमा! चरमा वि, अचरमा वि। एवं निरंतरं जाव वेमणिया। || रसचरमाचरमाइं ।। नेरइए णं भंते! रसचरमेणं किं चरमे अचरमे? गोयमा! सिय चरमे, सिय अचरमे। एवं निरंतरं जाव वेमाणिए। नेरइया णं भंते! रसचरमेणं किं चरमा, अचरमा? गोयमा! चरमा वि, अचरमा वि। एवं निरंतरं जाव वेमाणिया। 360
SR No.005761
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages554
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & agam_pragyapana
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy