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________________ ( १७५) कल्पवृक्ष चिंतामणि, कामगवी शुं थाय ? चित्रावेली हे कहा ? शुं साध्यां दुःख जाय ? १३ श्रवण नयन मुख कर भुजा, हृदय कंठ अरु भाळ; इनका मंडन हे कहा ? कहा जग म्होटा जाळ ? १४ पाप रोग अरु दुःखना ? कहो कारणशुं होय? अशुचि वस्तु जगमें कहा ? कहा शुचि कहा जोय ? १५ कहा सुधा अरु विष कहा ? कहा संग कुसंग ? कहा हे रंग पतंगका ? कहा मजीठी रंग? ११४ प्रश्नोनो उत्तर नीचे प्रमाणे (चोपाई) देव श्रीअरिहंत निरागी, दयामूळ शुचि धर्म सोभागी; हित उपदेश गुरु सुसाध, जे धारत गुण अगम अगाध.१ उदासीनता सुख जगमांहि,जन्म मरणसम दुःख कोइ नाही; आत्मबोध ज्ञान हितकार, प्रबळ अज्ञान भ्रमण संसार.२ चित्तनिरोध ते उत्तम ध्यान, ध्येय वीतरागी भगवान, ध्याता तास मुमुक्षु वखान, जे जिनमत तत्वारथ जान.३ लही भव्यताम्होटो मान, कवण अभव्य त्रिभुवन अपमान; चेतन लक्षण कहीए जीव, रहित चेतन जान अजीव.४ परउपगार पुण्य करी जाण, परपीडा ते पाप वखाण; आश्रव कर्म आगमन धारे, संवर तास विरोध विचारे.५
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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