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________________ ( १२१ ) में मेरा ए जीवकुं, बंधन महोटा जान । में मेरा जाकुं नहीं, सोही मोक्ष पीछान ॥४०॥ में मेरा ए भावथी, वधे राग अरु रोष । राग रोष जौं लों हिये, तौं लों मिटे न दोष ॥४०१॥ राग द्वेष जाकुं नहीं, ताकुं काल न खाय । काल जीत जगमें रहे, महोटा बिरुद धराय ॥४०२॥ चिदानंद नित कीजीए, समरण श्वासोश्वास । वृथा अमूलक जात है, श्वास खबर नहीं तास ॥४०३॥ एक महरतमांहि नर, स्वरमें श्वास विचार । तिहुंतर अधिका सातसो, चालत तीन हजार ॥४०४॥ एक दिवसमें एक लख, सहस्र त्रयोदश धार । एक शत नेQ जात है, श्वासोश्वास विचार ॥४०५॥ फुनि शत सहस पंचाणवे, भाखे तेत्रीश लाख । एक मासमें श्वास इम, एहवी प्रवचन शाख ॥४०६।। चउसत अडताली सहस, सप्त लक्ष स्वरमांहि । चार कोड इक वरसमां, चालत संशय नांहि ॥४०७॥ चार अबज कोडी सपत, पुन अडतालीस लाख । स्वास सहस चालीस सुधी, सो वरसामें भाख ॥४०८॥
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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