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स्वरमें दूजा स्वरतणो, प्रश्न करत तत होय । मिश्रभावथी रोगनी, उत्पत्ति तस जोय ।। १८६ ।। पूरण स्वरथी आयके, पूछे पूरण मांहि । सकल काज संसारके, पूरण संशय नाहि ॥१८७॥ खाली स्वरमें आयके, पूछे खाली माहि । जे जे काज दुभीतणो, ते ते होवे नांहि ॥१८८॥ खाली स्वरमें आयके, पूछे वहते मांहि । सिद्ध काज कहो तेहनो, यामें दुविधा नांहि ॥१८९॥ पूछे पूरण स्वर तजी, खाली स्वरकी औड । प्रश्न तास निष्फल होवे, सफल नहीं विधि कोड ॥१९॥ गुरुवार वायु भलो, शनि दिवस आकाश । चलत तत्व इम कायमें, पूरव रोग विनाश ॥१९१॥ प्रातःसमय बुधवारकुं, क्षिति तत्व शुभ जाण । सोमवार जल शक्रकुं, तेज हियेमें आण ॥१९२॥ शशि सूर स्वरमा अबै, करण जोग जे काम । तस विचार शुभ कहत हूं, सुखदायक अभिराम ॥१९३॥ देवल श्रीजिनराजनो, नवो निपावे कोय । खात महूरत अवसरे, चंद्रजोग तिहां जोय ॥१९४॥