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________________ . ( ८७ ) स्वरमें तत्त्व लखे जब कोई, ताकुं सिद्ध स्वरोदय होइ ॥१०७॥ ॥ अडिल छंद ॥ दोय स्वरोमें पांच तत्त्व पहिचाणीए, वर्ण मान आकार काल फल जाणीए । रणविध तच्च लखान साधता जे लहे, साची विसवावीस वात नर ते कहे ।। १०८ ।। ॥ दोहा ॥ पृथ्वी जल पावक अनिल, पंचम तत नभ जान । पृथ्वी जल स्वामी शशि, अपर तीनको भान ॥१०९॥ पीत श्वेत रातो वरण, हरित श्याम पुन जान । पंच वर्ण ये पांचके, अनुक्रमथी पहिछाण ॥११॥ पृथिवी सनमुख संचरे, करपल्लव षट दोय । समचतुरंस आकार तस, स्वर संगममें होय ॥१११॥ अधोभाग जल चलत है, षोडश अंगुल मान । वर्तुल है आकार तस, चंद्र सरीखो जाण ॥११२ ॥ चारांगुल पावक चले, ऊर्ध्व दिशा स्वर मांह । त्रिकोणा आकार तस, बाल रवि सम आह ॥ ११३॥
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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