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हरख शोक हिरदे नवि आने,
शत्रु मित्र बराबर जाने । परआशा तजी रहे निराश,
तेहथी होय ध्यान अभ्यास ॥ ८५ ॥ ध्यान अभ्यासी जो नर होय,
ताकुं दुःख उपजे नवि कोय । इंद्रादिक पूजे तस पाय,
ऋद्धि सिद्धि प्रगटे घट आय ।। ८६ ॥ पुष्पमाल सम विषधर तास,
मृगपति मृग सम होवे जास । पावक होय पाणी ततकाल,
सुरभिसुत सदृश जस व्याल ॥ ८७ ॥ सायर गोपदनी परे होय, ___ अटवी विकट नगर तस जोय । रिपु लहे मित्राइ भाव,
शस्त्रतंणो नवि लागे घाव ॥ ८८ ॥ कमलपत्र करवाल वखानो,
हालाहल अमृत करी जानो।