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( ७८ ) वायु पांच शरीरमें, प्राण समान अपान । उदान वायु चोथो कह्यो, पंचम अनिल अव्यान ।।६२॥ प्राण हिये पुन सर्वगत, तनमें रहत समान । आधार चक्रगति जाणिये, तीजो वायु अपान ॥६३॥ उदान वासह कंठमें, संधिगतिए अव्यान । पंच वायुके बीज पुन, पंच हिये इम आन ॥६४।। ऐ पै रौ ब्लौ क्लौ सुधी, पंच बीज परधान । इनके गर्भित भेदको, कहत न आवे मान ॥६५॥ पंच बीज संचारथी, अनहद धून जे होय । निर्गम भेद धूनितणो, जोगीश्वर लहे कोय ॥६६॥ वरण मात्र इण बीजके, कमल कमल थित जाण । भिन्न भिन्न गुण तेहनो, शास्त्रथकी मन आण ॥६७॥ सकल सिद्धि इणमें वसे, सर्व लब्धि इण मांहि । केतिक आज हुं संपजे, केतिक तो अब नाहि ।।६८॥ वरण नाभीमें संचरे, सोऽहं शब्द उद्योत ।। अजप जाप ते जाणीए, अनुभव भाव उद्योत ॥६९।। नाभीथी हिये संचरे, तिहां रंकार प्रकाश । मनथिरता तामे हुवे, अशुभ संकल्प होय नाश ॥७॥