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लीलायमान गजगमनी नित, ब्रह्मसुता चित्त ध्याइए। चिदानंद तस ध्यानथी, अविचल लीला पाइए ॥२॥
॥ दोहा ।। उदधिसुतासुत तास रिपु, वाहन संस्थित बाल । बाल जाणी निज दीजीए, वचन विलास रसाल ॥३॥ अज अविनाशी अकल जे, निराकार निरधार । निर्मल निर्भय जे सदा, तास भक्ति चित्त धार ॥ ४ ॥ जन्म जरा जाकुं नहीं, नहीं सोग संताप । सादि अनंत स्थिति करी, स्थितिबंधन रुचि काप ।।५।। तीजे अंश रहित शुचि, चरम पिंड अवगाह । एक समे समश्रेणिए, अचल थया शिवनाह ॥६॥ सम अरु विषमपणे करी, गुण पर्याय अनंत । . एक एक परदेशमें, शक्ति सुजस मात ॥ ७ ॥ रूपातीत व्यतीतमल, पूर्णानंदी ईस ! चिदानंद ताकुं नमत, विनय सहित निज शीस ॥८॥ कालज्ञानादिक थकी, लही आगम अनुमान । गुरु किरपा करी कहत हुँ, शुचि स्वरोदयज्ञान ॥९॥ स्वरका उदय पिछाणीए, अतिही थिर चित्त धार । वाथी शुभाशुभ कीजीए, भावी वस्तु विचार ॥१०॥