SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 33 ) शीत उष्ण अरु काठा कोमल, हलुवा भारी सोय; चिकणा लुखा आठ स्पर्श ए पुद्गलहुमें होय. संतो० ७ पुद्गलथी न्यारा सदा, जाण अस्पर्शी जीव; ताका अनुभव भेद ज्ञानथी, गुरुगम करो सदीव संतो०८ क्रोधी मानी मायी लोभी, पुद्गल रागे होय; पुद्गल संग विना चेतन ए, शिवैनायक नित जोय. संतो०९ नर नारी नपुंसक वेदी, पुद्गलके परसंग; जाण अवेदी सदा जीव ए, पुद्गल विना अभंग. संतो ० १० बूढा बाला तरुण थया ते, पुद्गलका संग धार; त्रिहुं अवस्था नहीं जीव में, पुद्गल संग निवार, संतो० ११ जन्म जरा मरणादिक चेतन, नानाविध दुःख पावे, पुद्गलसंग निवारत तिर्णदिन, अजरअमर होय जावे. सं०१२ पुद्गल राग करी चेतनकुं, होत कर्मको बंध; पुद्गल राग विसारत मनथी, निरागी निरबंध. संता ० १३ तन मन काया जोग पुद्गलथी, निपजावे नितमेव; पुद्गल संगविना अयोगी, थाय लही निज भेवै.संतो ० १४ पुद्गल पिंड थकी निपजावे, भला भयंकर रूप; पुद्गलका परिहार कीयाथी, होवे आप अरूप. संतो० १५ १ कठण. २ हमेशां. ३ मोक्षपति ४ ते ज दिवसे. ५ रूप.
SR No.005739
Book TitlePadyavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay, Kunvarji Anandji
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1995
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy