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પ્રતિષ્ઠાનો અહેવાલ देश के विभिन्न हिस्सों से प्राप्त हुई थीं। सारे देश में कितनी उमंग व्याप्त हुई यह इस संख्या से ही ज्ञात हो सकता है। काश्मीर से लगाकर मद्रास तक और कलकत्ता से लगाकर राजस्थान तक अनोखा उत्साह इस प्रतिष्ठा के लिये बना । जिन भाग्यशालियों की अर्जियां स्वीकृत हुई उनका तो मानो भाग्य ही जाग गया । ४५० वर्षों बाद इस महान गिरिराज पर सामान्य लोगों को भी प्रतिष्ठा का अवसर प्राप्त हुजा । इस युग में लोगों को इस प्रथा के माध्यम से भगवान महावीर का युग याद आ गया, जिस युग मे जैन शासन में पुणिया श्रावक की महत्ता थी। पेढी का यह निर्णय सारे देश में बहुत पसंद किया गया हजारों हजार सामान्य व्यक्तियों की भावना को इस से वेग मिला ।
माघ सुद ७ को प्रातः आचार्य देव, साधु-साध्वी, यात्रीगण प्रतिष्ठाकार्य में भाग लेने को पहाड की ओर रवाना हुये अनोखा उत्साह था। फोटोग्राफर पहाड के इन मनोहर दृश्यों के दनादन चित्र ले रहे थे। ठीक समय पर पहाड पर नये मन्दिर मे' प्रतिष्ठाकार्य प्रारम्भ हुआ।
पहाड पर बडी ढूंक के हरेक मन्दिर मे साधु और पूजा के वस्त्रों मे सन्जित श्रावक दृष्टिगोचर हो रहे थे ।
प्रतिष्ठा के बाद जब सब यात्री दादा की ढूंक में आ गये तो ऐसा विशाल मेला लगा जैसा शायद इन वर्षों में कभी देखा न गया हो। उत्साह देखने का था-कितनी प्रसन्नता थी उन परिवारों में, जिन को भगवान विराजमान करने का अवसर मिला था।
प्रतिष्ठा पर उपस्थित मानवमेदनी के भोजन की व्यवस्था, इतनी सुन्दर थी कि जैसी कम ही अवसरों पर देखी जा सकी है। स्वयंसेवकों का योग सराहनीय था । मध्याह्न २ बजे से ५ बजे तक निशुल्क भोजन की पूरी व्यवस्था थी।
गुजरात सरकार का सुन्दर सहयोग इस अवसर पर प्राप्त हुआ था। प्रतिष्ठा दिवस पर सारे गुजरात राज्य में कत्लखाने बन्द रखे गये थे। अहमदाबाद से बसों की विशेष व्यवस्था की गई थी। इस सारे समारंभ मे कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। पालीताना नगर के सब ही प्रजाजनों का अपूर्व सहयोग इस कार्य के लिये प्राप्त हुआ था। इस कार्य में जैन शासन के सब ही वर्गों के मुनिराजों का सुन्दर सहयोग मिला । सब गच्छों के ८०० की संख्या में साधु-साध्वी व करीब ३० हजार भारतभर के श्रावक यहां उपस्थित थे। वास्तव में ४५० वर्षों के इतिहास में यह अनोखा प्रसंग था।
श्री कस्तूरभाई का सार्वजनिक अभिनन्दन श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढी के ट्रस्टियों द्वारा महातीर्थ के जिनबिम्ब प्रतिष्ठा का अक सुन्दर आयोजन शत्रुजय महातीर्थ पर किया गया। इस सारी योजना का श्रेय सीधा श्री कस्तूरभाई लालभाई को जाता है, जो कि वर्तमान मे पेढी के अध्यक्ष
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