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________________ (१०९) निशाणी १२. मुंबइना मि. मोहनलाल पुंजाभाइy भाषण. मे. प्रमुखसाहेब, प्यारा बंधुओ अने बहेनो ! जे दरखास्त आपणा जनरल सेक्रेटरी मि. रायकुमारसिंहे मुकी छे तेने हुं मारा अंतःकरणथी टेको आपुंछ अने तेना टेकामां नीचेनी वीगतो जणावी आपन योग्य ध्यान खेंचवा रजा लउं छं. मारो विषय जीर्ण मंदिरोद्धारनो छे. अने तेनो ए अर्थ थाय छे के, आपणां ने मंदिरो छे ते जीर्ण थाय छे अने थयां छे तेने समारवा हुं आ मंदिर एटले शुं छे तेना उपर प्रथम ध्यान खेंचीश. आ मंदिर एक सामान्य घर नथी. आ मंदिर राजमहेल नथी, पण आ मंदिर ए छे के जेमां जग. त्ना नाथ तीर्थंकर भगवान् विराजे छे, जेनी आगळ इंद्रादि देवो अने चक्रवर्ती जेवा राजाओ पण हाथ जोडी उभा रह्या छे अने तेनी प्रार्थना करी रह्या छे. आ मं. दिर ते जीन मंदिर कहेवाय छे. अने तेनु कारण ए छे के, जेणे कोइनाथी न जिती शकाय तेवा अष्टकर्म रुपी शत्रुओने हरावी पोते जीनपद धारण करी रह्या छे तेमनी मूर्ति प्रतिमाने रहेवान ए स्थान छे. हवे आ मंदिर बंधाववा माटे केटलो खर्च थाय छे ते आप जाणो छो. बंधावनारनो हेतु पोताना एकला स्वार्थ माटे होतो नथी. मंदिरमां विराजता जीन प्रभुनी दरेक जीव शुद्ध मन वचन अने कायाथी सेवा बजावी मोक्षरुपी नगरीमा प्रवेश करी शके तेने माटे बंधाववामां आव्यां छे. आपणा बधाना एकसरखा लाभने माटे बंधावनारे ते बंधाव्यां छे तेम छतां ते जीर्णवस्थाने केम पाम्यां छे अने केम पामतां जाय छे ते हवे विचारवान छे तेनां मने त्रण कारण देखाय छे. १ रोगादि भयने लीधे केटलांक शहेरो उजड थइ जवाथी. २ मलेच्छादि राजाओना राज्यना जूलमथी. ३ आपणा प्रमादथी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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