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ते धर्मने चार विभागमां हुं वेहेंचण करवा मांगुं लुं.
( १ ) धार्मिक श्रद्धा, (२) धार्मिक ज्ञान, ( ३ ) धार्मिक वर्तणुंक, ( ४ ) धार्मिक वीर्य .
प्रथम तो धर्मनी श्रद्धा थवी जोइए, अने ते पण शुद्ध धर्मनी श्रद्धा थवी जोइए. ते उत्तम धर्म शिक्षकना सत्संगविना क्वचितज थाय छे. ज्यां सुधी सम्यग् श्रद्धा थती नथी त्यां सुधी धर्मनु ज्ञान गमे तेटलुं प्राप्त थाय तोपण ते अज्ञान याने कुत्सिज ज्ञान सरखुंज छे. शास्त्रमां पण कह्युं छे के, ज्यारे आत्माने सम्यग् दर्शन प्राप्त थाय छे त्यारेज तेनुं ज्ञान सम्यग् ज्ञान केहेवाय छे. तेथी सम्यग् दर्शन याने धार्मिक श्रद्धानी प्राप्ति माटे निरंतर धर्मगुरुना सत्संगमां वा उत्तम धर्म शिक्षकना सहवासमां रेहेवानी जरुर छे.
धार्मिक ज्ञान विना आत्मा के परमात्मानी कांइ पण खबर पडती नथी. अज्ञ माटे तो मारुं आ बोलवुंज नथी, परंतु तमो मध्येना जेओ, मात्र अंग्रेजी केळवणी लीला सुज्ञ छो, तेओ पण विचार करशे तो तेओना स्मरणमां आवशे के अंग्रेजी केळवणीनो अभ्यास करताना दरमियान आत्मा के परमात्मा वस्तुतः शुं छे ते संबंधी चिंतवन करवानो तेओए प्रसंग पण लीघेलो नहीं होय. मनुष्यना भवमां जे अवश्य कर्तव्य छे ते नानी उमरमां जे वखते उत्तम संस्कारो थवानो वखते अंधारामां रहे छे, ते खरेखर शोचनीय छे. एवं धार्मिक ज्ञान सत्संगमां रेहेवाथी वा शाळामां धर्मशिक्षक पासेथी वा तेवा थाय छे.
संभव छे, से
धार्मिक श्रद्धा अने धार्मिक ज्ञान विना उत्तम सद्वर्तन याने धार्मिक वर्तणुक होवानो लेश मात्र संभव नथी. धर्मनां ज्ञान अने श्रद्धाथी दूर रहेला मनुष्यो कदापि सद्वर्तनथी चालता होय तोपण ते मात्र सांसारिक सुखाभिलाषा माटेज चाले छे, एम समजाय छे. आत्मा, परमात्मा थाय एवी धार्मिक वर्त्तणुक, धार्मिक ज्ञानने सद्भावेज थाय छे. क्षमा, कोमलता, सरलता, संतोष इत्यादि गुणोवाकुं जे मुनिनुं असाधारण सद्व्रर्त्तन छे तेज आत्माने परमात्मा बनावे छे.
धार्मिक वीर्य तो आ काळमां लुप्तप्राय थइ गयुं छे एस कहूं तो ते विशेष
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पण सद्गुरुना ग्रंथोद्वारा प्राप्त
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