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________________ ( ७६ ) जैन युनिव्हर्सिटी स्थापन थवानो शुभ प्रसंग जो आज आपणे मळशे तो खरेखर ते दिवस आपणा जैन इतिहासमा सुवर्णाक्षरे लखावा जेवा थशे. तेवा भावी कॉलेजना अंदर आपणे उपयोगी थइ पडे तेवाज विषयो भणाववामां आवशे, तो तेथी खरेखर आपणुं कल्याण छे. आपणे हमेश जोइए छीए के, सरकारी कॉलेजोमांथी तैयार थएला विद्यार्थीओ सरकारी नोकरीना पाछळ वळगी शिक्षणनो मूळ हेतू कोरे मुके छे, अने घणा खरा लोको धर्म बाबतमां ने व्यापारी रीतभातमां के व्यापारनी खूबीओथी अजाण होय छे. सरकारी कॉलेजमां तमाम विषय इंग्लीश भाषाद्वारा शीखववामां आवे छे, तेम नहीं करतां आपणी कॉलेजमां तेमांना उपयुक्त विषयोज देशी भाषामां शीखववानो प्रयत्न थाय तो तेथी घणा लाभ थाय. ते साथे व्यापारने लगतुं पण शिक्षण आपणामां प्रसार पामे तो तेथी बहोळो लाभ थवानो संभव होय छे, - ए उपरथी जणाशे के, व्यापारी शिक्षण ए पण आपणा टेक्स्ट बुकोनो एक विषय थवो जोइए.' मारा केहेवानो मुख्य मतलब ए छे के, शाळोपयोगी पुस्तकमाळामां जैन तत्वविचार, बोधदायक दृष्टांत उपदेशपर कविताओ, स्तवनो, सझाओ ने व्यापारने लगती माहेती एवा प्रकारना विषय होवा जोइए. में दर्शावेली बाबतोथी भिन्न बाबतो विद्वान् लोकोना लक्षमां आवे ने ते प्र. माणे तेओ योग्य सुधाराओ करे तेमां मारो वांधो नथी. मारुं कहेवं एटलुंज छे के, फक्त मारा केहेवानो अल्प पण विचार थशे तो हुं मारा परिश्रमनु सार्थक्य गणीश. आपे मारूं कहेवू शांतताथी सांभळ्युं ते माटे आप साहेबोनो आभार मानी हुं रजा छउं छु. ( ताळीओ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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