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________________ टकावी राखवा केळवणी अने धंधो बनेनी जरुर हती. कोइ पण बुद्धिजीवी वर्ग आ बनेमां पछात होय तो अन्य समाजोनी हरोळमां टकी शके नहि ए देखीतुं हतुं. ___ मुख्यत्त्वे धार्मिक प्रवृत्तिओ माटे रचायेला आपणा “ संघो" आ प्रवृत्तिओ करी शके तेम नहोता. तेमनामां आ दृष्टि पण नहोती. नवयुगनी समस्याओने हल कर शके एवी साराये भारतवर्षनें प्रतिनिधित्व धरावती संगठित संस्थानी जैनसमाजने जरुर हती. युगबळने पारखनार श्री गुलाबचंदजी ढढाए ते उद्देशथी कॉन्फरन्सनी स्थापना करी हती. मूळ स्थापकोनुं आ दृष्टिबिन्दु पहेला फलोधी अधिवेशनना स्वागतप्रमुख शेठ हीराचंदजी सचेतीना व्याख्यानमां बराबर प्रतिबिंबित थाय छे. " हम लोगोमें विद्या का प्रचार ज्यादा नहीं है. प्रायः कर के व्यापार धंधे के अभाव से हम लोगों की आम हालत उमदा नहीं है. ताहम हमलोग इस बात को अंतःकरण से चाहते हैं कि अपने धर्म और जाति की जो गिरी हुई हालत इस वक्त नजर आती है तथा जो जो नुकशान अपने धर्म और जाति को पहुंच रहे हैं वे बंद होकर आयंदा अपनी धर्म और जाति की बहबूदी हो. और इस खयाल से हमने आप लोगों का आमंत्रण करके आपके वतन में बुलाये हैं." बीजी मुंबई कॉन्फरन्सना स्वागताध्यक्ष शेठ वीरचंद दीपचंद सी. आई. ई.ना भाषणनो नीचेनो फकरो कॉन्फरन्सना दृष्टिबिन्दु अने तेना स्वरुप उपर विशेष प्रकाश फेंके छे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005582
Book TitleJain Shwetambar Conferenceno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagkumar Makatai
PublisherSohanlal Madansinh Kothari
Publication Year1960
Total Pages216
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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