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१९५७ना दिवसोमा पोताने आंगणे मेळववानुं मान पण मुंबई खाटी गयुं हतुं. वीस अधिवेशनोमांथी छ अधिवेशनो तेम ज कन्वेन्शन अने शत्रुजय अंगेनु खास अधिवेशन मळी कुल आठ अधिवेशनो मुंबई खाते भरायां हतां. आ हकीकत जेम मुंबई माटे गौरवप्रद छ तेम मुंबई बहारनाओ पासेथी गंभीर विचारणा मागी ले छे. कॉन्फरन्स समस्त भारतना जैनोनी होई मुंबई बहारना जैनोनी जवाबदारी मुंबईना जैनो करतां सहेजे उतरती नथी. तेधी जुदा जुदा प्रदेशना जैनोनो कॉन्फरन्सने पोतपोताना प्रदेशमा निमंत्रवानो धर्म थई पडे छे.
स्वागतप्रमुख श्री हरखचंद वीरचंद गांधीए पोताना स्वागतप्रवचनमां समाजनी आर्थिक परिस्थिति, केळवणी, धर्म, समाज, साहित्य, वगेरे प्रश्नो उपर मननीय विचारो प्रदर्शित करी जैन विद्यापीठ, मध्यवर्ती समृद्ध पुस्तकालय अने जैनकला, शिल्प अने स्थापत्यना संरक्षणार्थे संग्रहालयनी स्थापनानी आवश्यकता उपर भार मूक्यो हतो. ___अधिवेशन- उद्घाटन शेठश्री मेघजीभाई पेथराज शाहे कर्यु हतुं. त्यारबाद आचार्यश्री विजयधर्मसूरीश्वरजीए मंगळस्तोत्र संभळावी मार्गदर्शक अने प्रेरक प्रवचन करी साधर्मिक बंधुओना उत्कर्ष माटे “ उदारभावे धननो वरसाद " वरसाववा अनुरोध करी " कॉन्फरन्स तीर्थरक्षा, शासनरक्षा अने साधर्मिक बंधुओना उत्कर्षनां सुंदर कार्यों करवा द्वारा सफळताने वरो" एवी अभिलाषा व्यक्त करी हती. आचार्यश्री गुणसागरसूरीश्वरजीए आ आधिवेशनमां छेल्ला दिवसे जैन संस्कृति, केळवणी, राजकारणमां सक्रिय भाग लेवानी जरुर अने एकता वगेरे प्रश्नो उपर अमूल्य मार्गदर्शन आप्यु हतुं.
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