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________________ आ अधिवेशने अनेक महत्वना ठरावो द्वारा समाजने मार्गदर्शन कराव्युं हतुं. अनेक विद्वान वक्ताओना प्रवचनो थयां हतां. प्रमुखश्रीए पोताना अति विद्वत्तापूर्ण व्याख्यानमां समाजना अनेकविध प्रश्नानी घणी ज झीणवट अने विस्तारथी समालोचना करी हती. कन्वेन्शन सम्मेलन-मुंबई समुद्रमां भरती अने ओट आवे छे. मानवजीवनमां पण चढतीपडतीरुप भरती अने ओट आवे छे. तेवी ज रीते संस्थाना जीवनमां पण भरती अने ओट आवे ए सामान्य बीना छ. भरती अने ओट सनातन छे; अने सनातन छे एटले जरुरी छे. जो भरती पछी ओट न आवे तो समुद्र छलकाई जायदुनियानो नाश करे. मानवजीवनमां भरती पछी ओट न आवे तो ते अभिमानी बनी जाय. संस्थामां पण भरती पछी ओट न आवे तो संस्थान चेतन हराई जाय, तेनो विकास अटकी पडे. कार्यकर्ताओमां अभिमान, संकुचितता अने सत्तानी साठमारी दाखल थाय. ओट आवकारदायक छे. ओटमां मानवीनी अने संस्थानी कसोटी थाय छे. धीरपुरुषो तेनाथी कदी गभराता नथी. निराश नही थतां साचा नाविकनी पेठे तेओ भरतीनी राह जुए छे अने भरती आवतां पोतानुं वहाण सहीसलामत हंकारी जाय छे. कुदरतना आ क्रममांथी आपणी कॉन्फरन्स पण मुक्त केम रही शके ?. फलोधीथी पुना सुधीना अधिवेशनोमां जैन समाजमां जे उत्साहनां पूर आव्यां हतां ते धीमे धीमे ओसरतां जतां हतां. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005582
Book TitleJain Shwetambar Conferenceno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagkumar Makatai
PublisherSohanlal Madansinh Kothari
Publication Year1960
Total Pages216
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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