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________________ प्रमुख साहेबर्नु भाषण पण अत्यंत मननीय अने विचारणीय हतुं. तेमां तेमणे धार्मिक अने व्यवहारिक शिक्षण, स्त्रीशिक्षण, राजभाषा, व्यापारकर्म अने हुन्नरकळानी अगत्य, जैन साहित्यनो प्रचार, जैन शिक्षण सभा, प्राचीन पुस्तकोद्धार, जैन डिरेक्टरीनी जरुरियात वगेरे विषयो अंगे-तलस्पर्शी विवेचन कर्यु हतुं. दरेक सारा काममां मुश्केलीओ आवे छे तेथी नहि डरतां आगळ वधq जोइए ए विषे बोलतां तेमणे जणाव्यु के, हर रस्ता साफ नहीं है। हर, फूल बिना कांटा नहीं है...जहां संप है वहाँ ही ताकत है, जहां संप नहीं वहां हानि है। कॉन्फरन्समें छोटे बड़ेका या धनाढ्य-गरीबका या उत्तर-दक्षिणका कुछ भेद नहीं आना चाहिये। बल्कि श्रीमंत.अपनी दोलतके बलसे, बुद्धिमान् अपनी बुद्धिके बलसे और शक्तिवान् अपने तनके बलसे इस सर्व साधारण श्रेयकाममें तनमनधनसे मदद दे कर संपकी वृद्धि करके जैनधर्मकी ध्वजा फरकाते रहें। आ अधिवेशने सर्वसाधारण ठरावो करवा उपरांत कॉन्फरन्सना बंधारण अंगेना ठरावमां चारे जनरल सेक्रेटरीओने पातपोताना विभागमा दरेक खाताने माटे खर्च करवा, जुदी जुदी ऑफिसो स्थापवा तथा प्रांतिक अने स्थानिक कमिटिओ स्थापी प्रांतिक अने स्थानिक सेक्रेटरीओ नीमी ठरावोनो अमल करवानी बाबत उपर खास भार मूकयो हतो. वळी आ अधिवेशने लोकसंपर्क बाबतमा एक कदम आगळ उठावी एक मासिक चोपानियुं काढी कॉन्फरन्सना कार्यथी समाजने माहितगार राखवा अने कॉन्फरन्सना ठरावोने पुष्टि आपवानो महत्वनो निर्णय लीधो हतो. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005582
Book TitleJain Shwetambar Conferenceno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagkumar Makatai
PublisherSohanlal Madansinh Kothari
Publication Year1960
Total Pages216
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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