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________________ १२३ आर्यभाषाना विकासनो इतिहास जाणवा माटे अर्धमागधी अगत्यनी भाषा छे तेमज भारतवर्षना आर्यदर्शनोमा महत्त्वना गणाता जैन दर्शनने समजवा माटे पण अर्धमागधी एक आवश्यक भाषा छे . एम जणावी निंगाळामां कॉन्फरन्से "" 66 'संयुक्त प्रान्त, बंगाळ अने पंजाब वगेरे प्रान्तोनी युनिवर्सिटीओने मुंबई युनिवर्सिटीनी जेम अर्धमागधीने स्थान आपवा खास "> (6 ―― भलामण करी हती अने जैनदानवीराने ते माटे योग्य स्कॉलरशिपो योजवा अने अभ्यासक्रममां चालतां पुस्तको शुद्ध अने सस्ता भाव प्रकट करवा जैन प्रकाशन संस्थाओने आग्रहपूर्वक भलामण करी हती. सोलमा अधिवेशने - "6 • जैन विद्यामंदिर के जेमां पुरातत्त्वनुं तेमज शोधखोळनुं तथा युनिवर्सिटीना अर्धमागधी अभ्यासक्रम माटे सहाय मळे अने मां अभ्यासीओना अभ्यास दरम्यान तेम ज अभ्यास पछीना निर्वाहनी योजनापूर्वक ऊच्च अभ्यास माटे संस्कारी वातावरण होय तेम ज जैनी द्वारा गुजराती, हिन्दी, प्राकृत, संस्कृत, पुरातन तेम ज अद्यतन साहित्यनो संग्रह, प्रचार अने प्रकाशन थाय तथा तत्त्वज्ञान, इतिहास अने क्रियानी रुचिकर चर्चा तथा व्याख्यानो थाय ते एक सुंदर केन्द्रस्थ स्थान स्थपाय "; वो ठराव कर्यो हतो. कॉन्फरन्सनुं आ स्वप्नं मूर्तिमंत थतुं होय तेम अमदावादमां शेठ कस्तुरभाई लालभाई अने तेमनां कुटुंबीजनोनी सहायथी " श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर बे वर्ष पूर्वे स्पायुं छे, अने ते द्वारा कॉन्फरन्सनी आ महेच्छा पूरी थशे एम लागे है. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005582
Book TitleJain Shwetambar Conferenceno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagkumar Makatai
PublisherSohanlal Madansinh Kothari
Publication Year1960
Total Pages216
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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