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સંક્રમણકરણ
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-: कर्मप्रकृति संक्रमणकरण गाथा :
सो संकमो त्ति बुच्चइ, जं बंधणपरिणओ पओगेणं । पगयंतरत्थदलियं, परिणमयइ तयणुभावे जं ॥१॥ दुसु वेगे दिविदुगं, बंधण विणा वि सुद्धदिद्विस्स ।। परिणमयइ जीसे तं, पगईई पडिग्गहो एसो ॥२॥ मोहदुगाउगमूलपगतीण, न परोप्परंमि संकमणं । संकमबंधुदउबट्टणालिगाई ण करणाई ॥३॥ अंतरकरणम्मि कए, चरित्तमोहेऽणुपब्बिसंकमणं । अनत्थ सेसिगाणं च, सबहिं सबहा बंधे ॥४॥ तिसु आवलियासु समयूणिगासु अपडिग्गहाउसंजलणा। दुसु आवलियासु पढमट्टित्तीए सेसासु वि य वेदो ॥ ५ ॥ साइ-अणाई-धुव-अधुवा य, सबधुवबंधपगतीओ। साइ अधुवा य सेसा, मिच्छा वेयणीयनीएहिं ॥६॥ मिच्छत्तजढा य, पडिग्गहम्मि सबधुवबंधपगतीओ। णेया चउबिगप्पा, साइ य अधुवा य सेसाओ ॥७॥ पगईठाणे वि तहा, पडिग्गहो संकमो य बोद्धव्यो । पढमंतिमपगईणं, पंचसु पंचण्ह दो वि भवे ॥८॥ नवगच्छक्कचउक्के, णवर्ग छक्कं च चउस बिइयम्मि । अनयरस्सिं अनयरा वि य वेयणीयगोएसु ॥९॥ अट्ठचउरहियवीसं, सत्तरसं सोलसं य पन्नरसं । वज्जिय संकमट्ठाणाई, होति तेवीसई मोहे ॥१०॥ सोलस बारसगट्ठग, वीसग तेवीसगाइगे छच्च । वज्जिय मोहस्स , पडिग्गहा उ अट्ठारस हवंति ॥११॥ छबीससत्तवीसाण, संकमो होइ चउसु ठाणेसु । बावीसपन्नरसगे, इक्कारसइगुणवीसाए ॥१२ ।। सत्तरसइक्कवीसासु, संकमो होइ पन्नवीसाए । णियमा चउसु गईसुं, णियमा दिट्ठी कए तिविहे ॥ १३ ॥ बावीसपत्ररसगे, सत्तगएक्कारसिगुणवीसासु । तेवीसाए णियमा, पंच वि पंचिदिएसु भवे ॥१४ ।। चोद्दसगदसगसत्तग - अट्ठारसगे य होइ बावीसा । णियमा मणुयगईए, णियमा दिट्टि कए दुविहे ॥१५॥ तेरसगणवगसत्तग - सत्तरसगपणगएक्कवीसासु । एक्कावीसा संकमइ, सुद्धसासाणमीसेसु ॥१६॥ एत्तो अविसेसा संकमति उवसामगे व खवगे वा। उवसामगेसु वीसा, य सत्तगे छक्क पणगे वा ॥१७ ॥ पंचसु एगुणवीसा, अट्ठारस पंचगे चउक्के य ।। चउदस छसु पगईसुं, तेरसगं छक्कपणगम्मि ॥१८॥
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