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________________ समझने जैसी बात ! — श्रद्धा और विश्वास की बातों में सिमहा वर्ग शास्त्रका परिशीलन आध्यात्मिक लक्ष्य की हुवा यह संसार धर्म और शास्त्र के सहारे परिपूर्ति के लिए करते रहे । जो कुछ मानता आया है, उसमें विसवाद इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि भारदेखकर जिज्ञासा से प्रश्न उठ सकता है, तीयोने विज्ञान की भौतिक धारा को विदा कर किन्तु विवाद नहीं। दिया, परन्तु विज्ञान के पक्ष-विपक्ष में ___ पर आज जब विज्ञान के कथित पहरे. उन्होने अपनी बुद्धिको उलझाया नहीं । दारोंने चन्द्र पर पहुंचने और वहांसे पृथ्वी वास्तवमें तत्वज्ञान वस्तुका सम्पूर्ण दर्शन के समान ही प्राप्त धरातल की मिट्री और कराता है और विज्ञान वस्तुके आंशिक चट्टानों के टुकड़े ले आने की घोषणा की है, स्वरुपका प्रायोगिक कक्षासे दर्शन कराता है। उससे विचारवान व्यक्ति के लिये एक चिन्तन इस सम्बन्ध में एक समीकरण प्रस्तुत किया की नई दिशा खुल गई। जा सकता हैं कि. वह बाध्य हो गया विज्ञान की सत्य " तत्त्वज्ञान आँख है, विज्ञान कोच हैं, ताको परखने के लिये ! क्योंकि वास्तविकता तत्त्वज्ञान प्राण हैं, विज्ञान शरीर है, से कोसों दूर रहकर विज्ञान बादी से तत्त्वज्ञान आँख हैं, विज्ञान हाथ-पैर है कल्पित शब्दों का जाल अब तक फैलाकर तत्त्वज्ञान दाँया पाँव है, विज्ञान वाँया अपना अस्तित्व जमाते आये है। पॉव है," , विज्ञान के शाखीय अर्थ है शिल्प और अतः विज्ञान तत्त्वज्ञान का अंग है शास्त्र, शिल्पका आशय भौतिक सभ्यताओं क्योंकि तत्त्वज्ञान सर्वागीण हैं विज्ञान की अभिवृद्धि करना हैं, और शास्त्रका आशय एकांगी है । आध्यात्मिक सम्पदाओंसे ।। फिर भी प्रचार-प्रसार बहु मुखी प्रस्थापाश्चात्य विद्वान शिल्प के सहारे भौतिक पना और प्रयोग परीक्षण आदि के आवरण सम्पत्ति में आगे बढ़ते रहे, भारतीय महर्षि से वह सत्यवत् आभासित होता रहता हैं। जरा सोचे !!! बुद्धि.......! काम बनाती भी है! काम बिगाडती भी है !! जैसा....उसका उपयोग... अगर बुद्धि का सदुपयोग है तो काम में सुन्दरता उभरेगी ! लेकिन उसका दुरूपयोग सत्कार्यो में हरकतें पैदा करेगा ? आजका समय इस बातका प्रत्यक्ष उदाहरण है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005570
Book TitleJambudwip Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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