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________________ तक के समुद्रों में नहाता हुआ मानों पृथिवी को नापने के लिये मानदंड के समान स्थित है । लेखक ने सिद्ध किया है किं इंग्लेंड, स्काटलैंड, आयरलैंड आदि ये सभी हिमालय पर ही स्थित है' । अनुसन्धान करने वाले विद्वान इस पर गंभीरता से विचार करें। जब से भारतवर्ष की सीमा अटक से कटक तक कन्याकुमारी से हिमालय तक संकुचित माने जाने लगी हैं, तब से ये सब देश भारत वर्ष से पृथक हो गये हैं, इन देशों में वर्णाश्रम धर्म रहा नहीं । ब्राह्मणों का वहां जाना बंद हो गया तब से वर्णाश्रमी प्रजा कन्याकुमारी से हिमालय तक के प्रदेश को ही भारतवर्ष कहने लगे हैं अब तो ब्रह्मा, लङ्का के पृथक होने से नवा पाकिस्तान बनने से इसकी सीमायें और भी संकुचित हो गयीं । कालान्तर में यहां के लोग उनमें स्थित तीर्थो को उसी भाँति भूल जायेंगें । जैसे चीन, जावा, सुमात्रा के तीर्थों को हम भूल गये हैं ! पंजाब में हिंगलाज की देवी उत्तर भारत के घर घर में पूजी जाती थी, आज वह पाकिस्तान में आने से इधर के लोग उसे भूल रहे हैं । कश्मीर में हमारे हजारों तीर्थ हैं किन्तु भारत सरकार की पक्षपात पूर्ण गलत नीति के कारण वे भी प्रायः लुप्त हो रहे हैं । तिब्बत में कलाश मान सरोवर हमारे परम पावन तीर्थ थे, प्रतिवर्ष भारत से सहस्रों यात्री वहां दर्शनों को जाते थे, अब Jain Education International ३१ जब से उसे चीन ने हड़पलिया है, तब से प्रायः यात्रा बंद सी ही हो गयी है । वैते केदार खण्ड में हिमालय की ५ श्रेणियों को परम पावन बताया है लिखा हैखण्डाः पश्च हिमालयस्य कथिता, नैपल कर्माञ्चलौ केदारोsथ जलं घरी सुरुचिरः काश्मीरसज्ञोऽन्तिमः अर्थात् हिमालय के पांच खंड परम पावन हैं, एक तो केदार खंड जिनमें बद्री, केदार, गंगोत्री, यमुनोत्री आदि तीर्थ हैं, दूसरा खंड कूर्माचल हैं, के जो कछुए आकार का है, जिसमें नैनीताल, अल्मोड़ा, कैलाश, मान सरोवर, तिब्बत आदि हैं, तीसरा नेपाल है, जिसमें पशुपति नाथ जी विराजमान हैं ये श्रेणियाँ चीन तक ओर इधर मान सरोवर तक चली गयी है, चौथा जालंधर है, जिसमें कोट कांगड़ा ज्वालामुखी, चिन्नपूर्णा देवी आदि तीर्थ हैं पंजाब का समस्त पर्वतीय विभाग हिमाचल प्रदेश सिमला आदि इसके अन्तर्गत है । और पांचवा काश्मीर है, जिसमें शिवजी अमरनाथ के रूप में स्थित हैं, ये श्रेणियाँ उधर रुस तक चली गयी हैं । समुद्र में हिमालय कहाँ तक छिपा हैं, इसकी एक पौराणिक कथा है पहिले पहाड़ों के पंख हुआ करते थे, उड़कर जिस नगर गांव में बैठ जाते, उसे नष्ट कर देते थे । देवताओं ने जाकर देवराज इन्द्र से शिकायत की कि, ये पर्वत प्रजा की बड़ी For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.005570
Book TitleJambudwip Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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