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कुहरे के आवरण से एपोलो यान से नहीं फूट के व्यास वाली रकाबी जैसी दिखनी दिखने वाली बात व्योम यात्रियों ने स्वीकृत चाहिये, क्योंकि पृथ्वी चन्द्रमा के व्यास से
करीब चौगुनी है, परन्तु 'केपकेनेडी से ___(5) एपोलो तिरछा गया यह बात प्रकाशित स्पेस पिक्चर्स आकाशीय चित्रावली 'केपकेनेडी' से प्रकाशित एपोलो की गमन में एसा कहीं भी नहीं दिखाया है। दिशा बताने वाले चित्र से भी स्पष्ट होती है। (7) एपोलो यान ने जहां अवतरण किया - दूसरी बात यह कि विज्ञान की मान्यता है वहां रेत, पत्थर मिट्टी, कंकर, गीलापन के अनुसार
आदि होने से भी वह कोई पर्वतीय प्रदेश 'केन्द्र में सूर्य, बाद में बुध, शुक्र और है एसा स्पष्ट होता है। पृथ्वी हैं, पृथ्वी का उपग्रह चन्द्र है। (8) 'अमेरिका और 'रशिया दोनो एक
इसलिये उससे एक ही कक्षा में 'पृथ्वी दूसरे के प्रति स्पर्धी है । अवकाशीय संशोसे आगे चन्द्र है, जो मात्र पांच अंशो का धन क्षेत्र में रशिया दा चरण आगे है। कोण बनाता है, किन्तु पृथ्वी केन्द्रवादियों अमेरिका का एपोलो 11 अवकाशीय की मान्यतानुसार 'पृथ्वी से ऊपर चन्द्र है' संशोधन के क्षेत्र में है, जबकि रशिया का यह बात आज का विज्ञान नहीं मानता है, ल्युना 15 था। इसलिये एपोलो यान को वे ऊपर क्यों भेजे ? वह ल्युना 15 भी एपोलो के साथ ही तिरछा भेजना ही विज्ञान की दृष्टि से चंद्र पर पहुंचा एसा कहा जाता है, किन्तु संगत है ।
रशिया ने ल्युना 15 के संबध से कोई जब कि वास्तव में 'चन्द्र तो ऊपर ही महत्त्वपूर्ण विवरण प्रकाशित नहीं किया है । है, तिरछा नहीं।
___ एपोलो · 11 को दिगन्त व्यापी विराट - अतः एपोलो की तिर्यक् गति प्रमाणित सिद्धि मिल जाने की घोषणा के पश्चात् भी कर देती है कि
रशिया का रहस्य पूर्ण मौन निश्चय ही १. 'चन्द्र पर न पहुंचकर भरतक्षेत्र के मध्य किसी तथ्य को छिपाये हुए है। खण्ड के 5 करोड भील व्यास बाले क्षेत्र में (9) चन्द्र की उत्पत्ति चन्द्र और पृथ्वी हा लाख मील दूर किसी पर्वत पर एपोलो का अन्तर तथा चन्द्र पर वातावरण अथवा यान उतरा।
जीव सृष्टि संबंधी धारणाएं आदि के संबंध (6) एपोलो यदि वस्तुतः वैज्ञानिको के में विज्ञान ने आज तक स्पष्ट नहीं किया । कथनानुसार चन्द्रमा पर गया हो, तो हम (10) 'काल बस' जिस प्रकार इंडिया यहां से पूर्णिमा के चन्द्र का 9 इंच की के भरोसे 'अमेरिका' पहुंचा और 'अमेरिका' रकाबी के जितना देखते है, तदनुसार चन्द्र को भारत समझता रहा, परन्तु मृत्यु पर्यन्त पर पहुंचने पर पृथ्वी 36 इंच अर्थात् 3 भी उसका भ्रम दूर न हुआ, उसी प्रकार
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