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________________ "क्या एपोलो यान चांद पर पहुंचा" लेखक-पू० उपा० श्री धर्म सागरजी महाराज के शिष्य पू० पं० __ मुनि श्री अभयसागर जी श्रद्धा और विश्वास की बातों में सिमटा इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि भारहुआ यह संसार धर्म और शास्त्र के सहारे तीयों ने विज्ञान की भौतिक धारा को विदा जो कुछ मानता आया है, उसमें विसंवाद कर दिया, परन्तु विज्ञान के पक्ष-विपक्ष में देखकर जिज्ञासा से प्रश्न उठ सकता है उन्होंने अपनी बुद्धि को उलझाया नहीं । किन्तु विवाद नहीं । . वास्तव में तत्वज्ञान वस्तु का सम्पूर्ण पर ! आज जब विज्ञान के कथित दर्शन कराता है और विज्ञान वस्तु के पहरेदारों ने चन्द्र पर पहुंचनें और वहां से आंशिक स्वरूप का प्रायोगिक कक्षा से दर्शन पृथ्वी के समान ही प्राप्त धरातल की मिट्टी कराता है । और चट्टानों के टुकड़े ले आने की घोषणा इस सम्बन्ध में एक समीकरण प्रस्तुत की है, उससे विचारवान व्यक्ति के लिये एक किया जा सकता है किचिन्तन की नई दिशा खुल गई है। "तत्वज्ञान आंख है, विज्ञान कांच है, ___वह बाध्य हो गया विज्ञान की सत्यता तत्वज्ञान प्राण है, विज्ञान शरीर है, को परखने के लिये । क्योंकि वास्तविकता से तत्वज्ञान आंख है, विज्ञान हाथ-पैर है, कोसों दूर रहकर विज्ञानवादी ऐसे कल्पित ___ तत्वज्ञान दांया पांव है, विज्ञान वांया पांव है" शब्दों का जाल अब तक फैलाकर अपना __अतः विज्ञान तत्वज्ञान का अंग है अस्तित्व जमाते आये हैं। क्यों कि तत्वज्ञान सर्वागीण है, विज्ञान विज्ञान के शास्त्रीय अर्थ हैं शिल्प और एकांगी है । शास्र, शिल्पका आशय भौतिक-सभ्यताओं की फिर भी प्रचार-प्रसार बहुमुखी प्रस्थापना अभिवृद्धि करना है, और शास्त्र का आशय और प्रयोग परीक्षण आदि के आवरण से आध्यात्मिक सभ्यताओं से । वह सत्यवत् आभासित होता रहता है। ___पाश्चात्य विज्ञान शिल्प के सहारे भौतिक इसलिये सत्य से दूर भटकते हुए मानव सम्पत्ति में आगे बढ़ते रहे, भारतीय महर्षि को सत्य के निकट लाकर उसका दर्शन वर्ग शास्त्र का परिशीलन आध्यात्मिक लक्ष्य कराना ही मुनि जीवन की सार्थकता की परिपूर्ति के लिए करते रहे। मानकर ५० उपाध्याय धर्मसागरजी के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005570
Book TitleJambudwip Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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