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________________ यह सिद्धांत इजहाक न्यूटन से बहुत "देखो यहोवा का वह दिन रोष, क्रोध पहिले, अर्थात् सृष्टि के आरम्भ से स्थित है और र्निदयता के साथ आता है कि वह और इसी सिद्धांत के आधार पर पृथ्वी बिना पृथ्वी को उजाड़ डाले और पापियां का उसमें टेक देश (space) में परमेश्वर के द्वारा से नाश करे । क्यों कि आकाश के तारागण स्थित है। और बड़े बड़े नक्षत्र अपना प्रकाश न देंगे, पृथ्वी गल रही है सूर्य उदय होते होते अंधेरा हो जायगा और ___बर्तमान में अनैतिकता के कारण पाप चन्द्रमा अपना प्रकाश न देगा । बहुत बढ़ गया है और पृथ्वी अपवित्र हो मैं जगत के लोगों को उनकी बुराई के गइ है। कारण और दुष्टों को उनके अधर्म के कारण दण्ड दूंगा । मैं अभिमानियों के अभिमान यशय्याह लिखता है का नाश करूंगा और उपद्रव करनेवालों के "पृथ्वी अपने रहनेवालों के कारण अशुद्ध घमण्ड को तोडूगा । मैं मनुष्य को कुन्दन हो गइ है क्योंकि उन्होंने व्यवस्था का उल्लंघन से और 'आदमी को ओपीर के सोने से भी किया और विधि को पलट डाला और अधिक महंगा करुंगा । इसलिये में आकाश सनातन वाचा को तोड़ दिया है,२० । को कंपाऊंगा और पृथ्वी अपने स्थान से टल परमेश्वरने पृथ्वी को अपनी महिमा के जाएगी । यह सेनाओं के यहोग के रोष के लिये बनाया था, किन्तु इस गैज्ञानिक युग में कारण और उसके भड़के हुए क्रोध के दिन मनुष्य स्वयं सर्वोपरि बन बैठा है । होगे ।२२” इसी कारण "पृथ्वी अपने सब रहनेवालों । ___इसी कारण मसीही धर्म में नैतिकता के समेत गल रही है ।"२१ और प्रभु यीशु मसीह में जो आदि और ___ पृथ्वी का अंश धीरे धीरे समाप्त हो अन्त दोनों ही हैं, विश्वास करने की शिक्षा रहा है । कइ नदियां अपने तटों को काट दी जाती है ताकि विश्वासी आत्मिक रुप से रही हैं । 'पृथ्वी का. गलना' विषय पर शोध शाध बचाया जावे । की आवश्यकता है। पृथ्वी जल जाएगी पृथ्वी अपने स्थान से टल जायेगी । नये नियम की अन्तिम पुस्तक 'यूहन्ना पृथ्वी पर जब अधिक अनैतिकता बढ़ का प्रकाशित वाक्य' है। इसमें भविष्य वाणी जाएगी, तब पृथ्वी का नाश होगा। और की गइ हैअपने स्थान से टल जाएगी जैसा कि .. "मसीही धर्म में यह विश्वास किया निम्नलिखित शब्दों में कहा गया है- जाता है कि प्रभु-यीशु मसीह पुनः न्याय २० यशय्याह २४:५ २२ यशय्याह १३:१३ २१ भजन संहिता '५:३ २२ पतरस ३:१०, १३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005569
Book TitleJambudwip Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages250
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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