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________________ ऋग्वेदिक सृष्टि-विज्ञान के भौगोलिक आधार -डो. श्यामसुन्दर निगम २४, केशवनगर, हरीफाटक, उज्जैन (म. प्र.) (लेखकके विचारोंके साथ वैमत्य होते हुए भी संग्रह एवं विभिन्न विचारधारा प्रस्तुतीकरणकी दृष्टि से लेखको स्थान दिया है सं.) सृष्टि के उद्भव एवं विकास की परि- एवं इस माध्यम से उन्होंने ब्रह्म एव' कल्पनाको भूगोल एवं भौगोलिक-उपादानों प्रकृति विषयक गूढ़ एवं गुह्य सत्यों एवं द्वारा अभिव्यक्त किया गया है। नियमोंका अनायास ही अन्वेषण कर डाला । सृष्टि-विज्ञान की इस सीमा से ऋग्बौदिक ऋग्गैदिक-मान्यताके अनुसार सृष्टि एवं मन्त्र-दृष्टा भी परिचित रहे हैं । पाश्चात्य प्रलयका एक नियत क्रम है। . जडवादियों ने सृष्टि की सृष्टि का पदार्थों के विभिन्न-कल्पों में प्रलय के उपरांत परस्थूलत्व से समझानेका प्रयास किया है। मात्मा के मन में सृष्टिकी पुनः-रचना का प्राचीन यूनानी इसकी गहराई तक खोज संकल्प होता है । यह उसकी संकल्प-सृष्टि है । करते हुए 'जल' को मौलिक पदार्थ मान बैठे। वह अपने संकल्प के बीजों को स्वयं ____ आजका वैज्ञानिक भी स्थूल से सूक्ष्म की में ही सर्वप्रथम स्थापित करता है। इस खोज करता हुआ परमाणुओंके मायाजाल में कारण उसे हिरण्यगर्भ की संज्ञा दी गई है। जा उलझता है और उसके आगे नेतिनेति परमात्मा सृष्टिका उपादान कारण भी करता हुआ अनिश्चय के सिद्धान्त (Gheory बनता है और निमित्त कारण भी । of Uncertaimty) की चर्चा करने लगता है। वह अपनी तपस् शक्ति से ऋत, सत्य, __भारतीय तत्त्व - चिन्तकोंकी दृष्टि इस काल, परमाणु-मय आकाश, दिन-रात्रि, दिशा में अधिक गहरी, सूक्ष्म, पैनी एवं दिशाओं एवं ऋतुओं की सृष्टि करता है । विज्ञान-सम्मत रही है; - वह स्वयं ही समस्त जड़ व चेतन का - यह बात दूसरी है कि अपनी बात आत्मा होता है । वह स्वयं के द्वारा रचित कहने का उनका परिवेश गुह्य एवं दार्शनिक प्रकृति से धूलोक एवं पृथ्वी का निर्माण करता है। रहा । उनकी यह दृष्टि अपने प्रारंभिक एवं वह इतना करते हुए भी इन सबसे परे मल रूप में ऋग्वेद में विद्यमान है। रहता है, तथा अपने मायोपाधिक विगट ___ अतः सृष्टि-बिज्ञान सम्बन्धी अपनी वात स्वरूप के द्वारा अव्यक्त-प्रकृतिको व्यक्त करता कहने के लिये वैदिक-ऋषियों ने स्थूल भूगोल हुआ 'एकोऽहम् बहु स्याम्' के अपने संकल्प से परे। क्ष्म-भूगोलका साक्षात् किया, को पूर्ण करता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005569
Book TitleJambudwip Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages250
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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