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________________ ६१ होगा, उतनी ही छाया में वृद्धि होगी। जाता है । किन्तु जब बह ५१० योजन परे . (७) सूर्य-विमान के गमन करने की बाहरी-गली में पहुंचता है, तब भरत-क्षेत्र १८४ गलियां हैं। प्रत्येक गली की चौड़ाई में दिन का प्रमाण छोटा होता है । जब ०० योजन है । प्रत्येक गली दसरी गली से वह मध्यवर्ती-मण्डल में पहुंचता है, तब समान दिन-रात (१५-१५ मुहूर्तो के) होते हैं१ ! २-२ योजन के अन्तराल से है । इस प्रकार जम्बूद्वीप में सूर्य की सबसे प्रथम गली कुल अन्तराल १८३ हैं । अतः कुल 'चार' चार (Orbit) की प्रथम आभ्यन्तर-परिधि (orbit) का विस्तार (१८३ ४ २) (कर्क राशि) है । लवण-समुद्र में ३०३ + (४८ x १८४) = ५१० ४८ योजन योजन की दूरीपर स्थित गली की अंत की बाह्य परिधि मकर राशि है । अषाढ में सूर्य प्रमाण ठहरता है। प्रथम गली में या कर्क राशि पर रहते है, ___जम्बूद्वीप में प्रतिदिन सूर्य के उदयान्तर उस समय १८ मुहूर्त का दिन तथा १२ का कारण उसके चार-क्षेत्र की गलियों की मुहूर्त की रात्रि होती है । जब सूर्य इस दो-दो योजन की चौड़ाई और उसका अपना गली से ज्यों-ज्यों बाह्य गलियों में (दक्षिणा यन मे) चलते है, तो गलियों की लम्बाई विस्तार (४८ योजन) है। बढते जाने से, सूर्य की गति तेज होती है। उस समय रात बढती है; और दिन घटता चन्द्रमा के १५ ही मार्ग (गलियाँ) है। जाता है । माध के महीने में जब सूर्य चन्द्रमा को पूरी प्रदक्षिणा करने में दो दिन- मकर राशि-अतिम गली में पहचता है रात से कुछ अधिक समय लगता है, इस- तो दिन १२ मुहूर्त का तथा रात १८ मुहूर्त लिए चन्द्रोदय के समय में अन्तर पडता है। की होती है । यहां से सूर्य पुनः उत्तरायण सूर्य अपने (जम्बूद्वीप में) विचरण-क्षेत्र को चलते हैं । प्रथम व अंतिम गलियों में की १८४ गलियों में विचरता हुआ जब सूर्य एक वर्ष में एक बार ही गमन करते भीतरी गली में पहुंचता है, तब दिन का हैं और शेष गलियों में आने-जाने की प्रमाण बढ जाता है, और प्रभात शीघ्र हो दृष्टि से एक वर्ष में दो बार गमन करते प्रदीपादिवद् आदित्याद् न दूरे छायाया १. चैत्र व आश्विन मास में (१५-१५ वृद्धिघटनातू निकटे प्रभातोपपत्तेः (त०सू० मुहूर्तो के) दिन-रात की यह स्थिति ४।१९ पर श्लोकवार्तिक, खण्ड-५, पृ० है । (द्र. समवायांग, सु. १५-१०५) ५६३)। सबसे छोटा दिन या रात १२ मुहूस २. तस्य छाया महती दूरे सूर्यस्य गतिमनु- का होता है (द्र. समवायांग-सु. १२ मापयति तिकेऽतिस्वल्पा (त. सू. ४।१९ ८१, लोक प्रकाश-२०-७५-१०३, चंदपर श्लोकवार्तिक, खण्ड-५,पृ.५७१) । पण्णत्ति-१-१-९)।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005569
Book TitleJambudwip Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages250
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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