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________________ ६३ (इ) पृथ्वी पर मध्यलोक का संक्षिप्त विवरण सम्भव नहीं८ । इसलिए मानुषोत्तर पर्वत इस पृथ्वी के मध्य भाग में 'जम्बदीप' के पूर्व तक, अढाई द्वीप में मनुष्य क्षेत्र स्थित है, जिसका विस्तार एक लाख योजन (मनुष्य-क्षेत्र) की मर्यादा मानी गई है। (लम्बाई-चौड़ाई) है४ । इसे सभी ओर से मानुषोत्तर पर्वत १७२१ थोजन ऊंचा, तथा (वलयाकार) घेरे हुए दो लाख योजन विस्तार मूल में १०२२ योजन चौड़ा हैं९ । (लम्बाई) वाला तथा १० हजार योजन मध्य लोक के ठीक मध्य में एक लाख चौड़ाई वाला लबणसमुद्र है५ । इसी योजन विस्तृत, तथा सूर्य-बिम्बवत् वतुलाप्रकार एक दूसरे को घेरते हुए, क्रमशः धात कार जम्बूद्वीप हैं१ । इस द्वीप को विभाजित कीखण्ड द्वीप, कालोद समुद्र, पुष्कर द्वीप, पुष्करोद करने वाले, पूर्व से पश्चिम तक फेले हुए समद्र, वरुणवर द्वीप वरुणवर समुद्र, क्षीरवरद्वीप, (लम्बे) छः वर्षधर पर्वत है:२-(१) हिमवान् क्षीरोद समुद्र, घृतवर द्वीप, घृतवर समुद्र, ८. ति० प० ४।२९२३, सर्वार्थसिद्धि-३/३५ क्षोदवर द्वीप, क्षोदवर समुद्र, नन्दीश्वर द्वीप, त० सू० ३।१४ (श्वेता० सं०), हरिनन्दीश्वर वर समुद्र आदि असख्यात द्वीप वश पु० ५।६११-१२, श्वेताम्बर मत समुद्र हैं ! सब के अन्त में असंख्यात में क्रियलब्धि-सम्पन्न तथा चारण योजन विस्तृत स्वयम्भूरमण द्वीप है६ । मुनि मानुषोत्तर पर्वत के पार भी, जा पुष्कर द्वीप को मध्य में से दो भाग सकते है। (मानुसुत्तरपव्वयं मणुया ण करता हुआ मानुषोत्तर पर्वत है,७ जिसके कयाइ वीइवइंसु वा वीइयवति वा वीइवइआगे मनुष्यों का सामान्यतः · जाना-आना स्सति वा णण्णत्थ चारणेहिंवा देवकम्मुणा ४. ति० प० ४/११, लोकप्रकाश-१६/२२, वा वि-जीवाजीवाभि० सू०३।२।१७८,) हरिवंश 'पु० ५/३, त० सू० ९/८ पर किन्तु हरिवंश पु० (दिग०) ५।६१२ में श्रुतसागरीयवृत्ति, स्थानांग-१।२४८, जम्बू समुद्घात व उपपाद में ही इस पर्वत दीव पण्णत्ति (श्वेता०) ७/१७६, सम के आंगे गमन बताया है । वायांग-१।४ जीवाजीवाभिगम-३।१२४, ९. हरिवंश पु० ५/५६१-६३, जीवाजीवा० ५. ति० प० ४।२३९८, ४/२४०१, जीवा- ३/२/१७८, स्थानांग-१०।४० बृहत्क्षेत्रजीवा० ३।२।१७२, समास-५८३-८४. ६. त्रिलोकसार-३०४-३०८, त० सू० ३८ १. स्थानांग-१।२४८, त्रिलोकसार-३०८, तक पर श्रुतसागरीयबृत्ति, · लोकप्रकाश-१५। सू: ३९ पर श्रुतसागरीय वृत्ति, २३-२७, जीवाजीवा० ३।२।१८५, हरि- २. त० सू० ३।११, ति० प० ४।९४, लोकवंश-पु० ५।६२६, . प्रकाश-१५।२६१-२६३, स्थानांग-६।८५, ७. हरिवंश पु० ५।५७७, ति० प० ४।२७ ७५१, जम्बूद्वीप (श्वेता०) ६।१२५, ४८, बृहत्क्षेत्रसमास-५८२, ५८७, बृहत्क्षेत्रसमास २२,२४, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005569
Book TitleJambudwip Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages250
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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