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________________ के प्रेक्षकों से कहा था - " चन्द्र हम तीनों के लिये भिन्न-भिन्न वस्तु है । मेरे मतानुसार वह विशाळ खाली जगह जैसा है । वहां रहने अथवा काम करने के लिए मन हो, एसा नहीं है ।" अन्य व्योमयात्री लोवेल ने कहाविशाल आकाश में वह मरुद्वीप जैसा लगता है ।" तृतीय व्योमयात्री एण्डर्स ने कहा“चन्द्र पर होनेवाले सूर्योदय और सूर्यास्त से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं । इस ग्रह पर अनन्त वस्तुओं के प्रहार हुए हों। एसा लगता है । छोटी छोटी बातें देखी जा सकती । चन्द्र के अधियारी भागकी ओर रेती के ढेर है ।" (दिनांक २६-१२-६८) इसी प्रकार २४ - १२-६८ को भारतीय स्टेण्डर्ड' समय शामके ६-२ मिनिट पर चन्द्र की दूसरी प्रदक्षिणा के समय टेलिवीजन सेट पर व्योमयात्रियों ने तेरह मिनट का कार्यक्रम दिया था, बताया था कि प्रसारित चित्र में जिन विशाल उन्हें हमने देखा है । कहा - "सी ओफ फर्टीलिटी पृथ्वी पर के बल पर जैसा दिखता है वैसा नहीं है । " चन्द्र राख जैसे रंग का है, उसका कोई विशिष्ट रंग नहीं है ।" कल्पना तब उसमें उन्होंने किये गये चन्द्र के गड्डों के चित्र है व्योमयात्री लोवेलने . ( जब कि दि. २६-१२-६८ के निवेदन में व्योमयात्रियों ने चन्द्र को श्वेत और श्याम सागर जैसा बताया था । इसलिये चन्द्र के रंग के सम्बन्ध में सत्यता क्रया है ? यह Jain Education International ४२ बात विचारणीय है ।) " जमीन सरलता से देखी जा रही है । “विशाल गड्डोंवाले मैदान, उबडखाबड मैदान तथा पर्वतों पर अनेक खंदरें दिखाई देती है ।" "विशाल खंदरों की दीवाले छः से सात मंजिल जितनी ऊंची है ।" " ज्वालामुखी के मुंह बंद हैं । इनमें से अनेक गोलाकार हैं । मानों उन पर कोई वस्तु पड़ी हुई है ।" जबकि दिनांक २६-१२-६८ को व्योमयात्री एंडर्स शब्दों में चन्द्र के निकट होने पर भी ज्वालामुखी है या नहीं यह चट्टानों पर स्पष्ट नहीं हुआ था । ताज हो ऐसा दिखाई " कुछ देता है ।" " जैसी दृष्टि वैसी वहां उनको ताज की "कुछ स्वंदरों की “कुछ खंदरों के ये सब बातें भूमि पर से संदेशा समज गये हैं ।" ऐसा विवरण बताने से सृष्टि" के अनुसार कल्पना याद आई । दिखाए छत की तरह है बीच शंकु है ।" चल रही थी उसी समय मिला - " तुम्हारी बात कहकर अधिक रोका गया है ऐसा लगता है । उपर्युक सभी निवेदनों पूर्वक विचार करनेसे विशाल विस्तार वाले विवरण दे रहे हैं । For Personal & Private Use Only पर गंभीरता - ज्ञात होता है कि पर्वतीय प्रदेश का इसके आधार पर मुनिराज श्रीने अपना मत व्यक्त किया है कि " भारतवर्ष की प्राचीन विशेषता रुप आर्ष दृष्टि से लिखे गए ३००० वर्ष पूर्व के शास्त्रों में पृथ्वी का जो बहुत बड़ा विस्तार दिखाया गया है, उसके एक अति सूक्ष्म अंशरुप www.jainelibrary.org
SR No.005569
Book TitleJambudwip Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages250
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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