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________________ नही है, वे धर्म और ईश्वर के प्रति आस्थवान जिक, और बौद्धिक अधःपतन अथवा शोषण नहीं है, वे नास्तिक हैं, विदेशी हैं आदि की चिंता किये बिना अरबों रुपये भारतीय किन्तु विज्ञानवाद को यह आक्रमण सर्वथा शासन ऋण ओर. सहायता के रुप में निराकरणीय है क्योंकि आज हम अपने स्वीकृत कर रहा है। जिसका मूल अथवा शास्त्रों के अध्ययन से दूर है, दैनिक उपयोगिता सूद भी भारत सरकार भर नहीं सकती । की वस्तुओं की सुलभता से विज्ञानवाद के व्यवहार में किसी के पास से यदि समक्ष आत्म-समर्पण कर रहे हैं। हमने १००-२०० रुपये लिये हों, तो उससे उसके सोचने की पद्धति स्वार्थ से आक्रान्त दबे हुए रहना पडता है और उसकी हां है, जिससे वह अपने हित, मित तथा पथ्य में हां मिलानी पड़ती है। इसी प्रकार ' की ही बात सोचता है । वैसे यह सोचना रुस के झोंड का जितना प्रचार अथवा कोई अनुचित नहीं है, किन्तु ऐसा सोचने के जितना विवरण समाचारपत्रों में नहीं आया साथ ही पूर्व-महर्षियों द्वारा चिंतित तथा आया था और पत्रकारों ने उसे जितना परम-तप श्रम से प्राप्त चिंतन को भी जब महत्व नहीं दिया था, उसकी अपेक्षा कई वह सहज ही अज्ञान-विजृम्मित कहने का गुना अधिक प्रचार अमेरिका द्वारा छोडे दुःसाहस कर बैठता है तो एक चिंता का गये स-मानव राकेट अपोलो ८ आदि के विषय बन जाता है। _ विषय में आरम्भसे अन्त तक सूक्ष्म से सूक्ष्म गत कुछ दिनों से अपोलो यान की विवरण, चित्रों प्रशंसात्मक कथन आदि से क्रियाशीलता तथा उसकी क्रमिक-सफलता के भारत पर अमेरिका का आर्थिक प्रभत्व बारे में पर्याप्त ऊहापोह हो रहा है। जैसे स्पष्ट रुप से दिखाया गया था। अस्तु.... तो रुसने भी झोडको चन्द्र के आसपास परि बात यह है कि एपोलो-८ से अब क्रमा करके वापस लानेकी बात प्रसिद्ध की है, तक छोड़े गए अंतरीक्षयानों से प्राप्त जानकिन्तु उसकी अपेक्षा एपोलो ८,९,१०,११ की कारियों और समाचार-पत्रों में प्रकाशित बात से बहुत आश्चर्य और ऊहापोह हुआ विभिन्न-समाचारों का यदि तटस्थ रूप में है, उसके अनेक कारण हो सकते है। विश्लेषण किया जाय तो उनमें से बहुत ____एक तो तीन व्योमयात्रियों के विषयमें सी बाते के लगभग तो केवल आंतरराष्ट्रीय कहा जाता है, उसके द्वारा मानवयुक्त रोकेट ख्याति और भारतीय-संस्कृति पर गुप्त प्रहार पहली बार ही उनके कथनानुसार चन्द्र तक करने के उद्देश्य से प्रचारित प्रतीत होती है जाकर वापस आ गया कहा जाता है। जिनमें सत्यांश बहुत ही कम है । दूसरी बात यह कि भारत को अद्यतन ये सभी बाते विज्ञ-पुरुषों को, विचार विशिष्ट भौतिकयुग के साधनों से समृद्ध पूर्वक समझनी चाहिये ।। बनाने की मिथ्या लिप्सा में आश्वस्त कर किसी भी प्रकार के पूर्वग्रह के बिना भारतीय-प्रजा के आर्थिक, नैतिक, सामा- सत्य के संशोधक के रूप में अपना उत्तर - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005569
Book TitleJambudwip Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages250
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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