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________________ ३७ "छोटी छोटी बातें देखी जा सकती है नया ही प्रकाश डालता है, इस में सत्य ओर जमीन सरलता से देखी जा सकती क्या है ? यह भी विचारणीय बात है। है ।” दि. २४-१२-६८ के निवेदनों में (१०)-रूमानिया विश्वविद्यालय के एक चट्टाने, पर्वत, शिखर आदि को मानों वहुत प्राध्यापकने 'स्टडी एण्ड रिसर्च' नामक संशोही निकट से देखकर ही निवेदन किया हो, घन पत्र में वर्षों के बाद-"चन्द्र की उत्पत्ति ऐसी सूक्ष्म से सूक्ष्म बाते बताई है। पृथ्वी से नहीं हुई है ।” ऐसा बताया है, वस्तुतः वे चन्द्र के धरातल के निकट तब आज चन्द्र को पृथ्वी का उपग्रह पहुचे हों, तो ज्वालामुखी की आनुमानिक मानकर की गई एपोलो ८ की चन्द्रयात्रा कल्पना का अवसर नहीं रहता, फिर भी किस प्रकार सफल हुई होगी ? ऐसा कैसे हुआ होगा ? यह एक प्रश्न है। (११)-दिनांक २४-१२-६८ के निवेदन (८)-दिनांक २३-१२-६८ के निवेदन में व्योमयात्रियों ने कहा-"१,१४००० किलोमें व्योमायत्रियों ने चन्द्रमा को श्वेत और मीटर दूर से पृथ्वी यथाक्रम देख सकने का श्याम सागर जैसा बतलाया है, किन्तु दि. लेन्स निष्फल गया है ।" २४-१२-६८ की संध्या को ६-०२ मिनिट "आकाश-यात्रियों की दो खिडकियां पर १३ मिनिट तक प्रसारित किये गये टेली- ओस से व्याप्त है, एक अन्य खिडकी भी विजान कार्यक्रम के समय बताया गया कि- कुहरा से व्याप गई है, सामने की दो "चन्द्र का कोई विशेष रंग नहीं है ।" खिडकियां ही स्पष्ट रही हैं।" तब वास्तव में सत्य क्या है ? सामने की दो खिडकियों को छोड़कर (९) केलिफोर्निया विश्वविद्यालय के अन्य खिड़कियां कुहो और ओस से ढकी हई डॉ. हेरल्ड उरे ने दिनांक २८-१२-६८ को हो, तो वे पृथ्वी को स्पष्ट कैसे देख सकते अमेरिकन एसोसिएशन की वार्षिक बैठक में है ? और टेली लेन्स निष्फल हो गया कहाँ हैं-"चन्द्र ठण्डा है और पृथ्वी से तो अफ्रीका, अमेरिका तथा उस के अंतर्गत अलग रुप में उसका उद्भव हुआ है । वह छोटे प्रदेशों का दिखाई देने का व्योमयात्रियों ने पृथ्वी से आकृष्ट हुआ था और सूर्य जिससे कहा है, वे किस प्रकार दिखाई दिये होगे ? बना हैं उसी प्रकार की आकाशीय रज से आदि बाते विचारणीय है। . चन्द बना हुआ है ।" (१२) पृथ्वी के वातावरण से बहार इस कथनानुसार वर्तमान विज्ञान की निकलने के बाद सूर्य की प्रचण्ड गर्मी धारणा है कि चन्द्र पृथ्वी से (अभी जहां आकाश में चारों ओर फैली हुई गैज्ञानिक पेसिफिक महा सागर हैं वहां से) पृथक् हुआ मानते हैं, तो एपोलो-८ पृथ्वी के बातावरण हैं और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण आदि के से निकलने के बाद उसकी खिड़किओ पर प्रभाव से पृथ्वी के आसपास घूमने लगा कुहरा और ओसका कैसे सम्भव हो सकता है ? है । इस वात पर डो. उरे का कथन कुछ सूर्य की तीक्ष्ण गर्मी से कुहरा और ओस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005569
Book TitleJambudwip Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages250
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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