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________________ आश्चर्य नहीं करना चाहिये । कोलम्बस इन्डिया के भरोसे जिस प्रकार अमेरिका पहुंच गया और मृत्यु पर्यन्त उसका अपना भ्रम दूर नहीं हुआ, इसी प्रकार वास्तव में विज्ञान पूर्ण रुपेण स्थिर भूमि पर अब तक खड़ा नहीं हो पाया है, कतिपय मान्यताओं के आधार पर स्थिर बनने के लिये प्रयत्नशील विज्ञान प्रतिदिन नये नये साधनों से सुसज्जित प्रयोग शालाओं के विविध संशोधनों के बल पर स्थिर स्वरुप प्राप्त नहीं कर पाया है तथापि चन्द्रमा तक हम पहुंच गये । देखो वहां मिट्टी ही है अन्य कुछ नहीं । इत्यादि जोशिले प्रचार से और अन्यान्य प्रक्रियाओं के सहारे भारतीय प्रजा के मानस में घर बनाकर बने हुए शास्त्रों के प्रति निष्ठा .. को श्रद्धा को शिथिल बनाने की नीति अपनाई हैं। एसा प्रतीत होता है । उप प्रश्नों और उनसे सम्बन्धित तथ्यों के आधार पर एपोलो की चन्द्र यात्रा (?) के रहस्य के प्रति सशंक होना स्वाभाविक ही है । भारतीय वेद वेदांग ओर जैनागमो में चन्द्रमा के सम्बन्ध में विभिन्न दृष्टियों से विचार विमर्श किया हैं 'सूर्य' - प्रज्ञप्ति' और 'चन्द्र - प्रज्ञप्ति' जैसे जैन ग्रंथों के वर्णन से यही प्रमाणित होता है कि एपोलो चन्द्रमा की और नहीं गया है | पुराणों में वर्णित चन्द्रमार्ग और वहां की स्थिति के लक्ष्य में रखते हुए कुछ विद्वानों ने 'स्थितस्य गतिश्चिन्तनीया' वाली उक्ति के अनुसार पुराणोक्त वर्णन के साथ अपोलो की यात्रा का साम्य बैठाने का प्रयास किया है, Jain Education International किन्तु दीर्घकालीन अध्ययन, मनन और संशो के आधार पर पू. प. मुनिश्री अभयसागरजी म. गणीका तो सदैव यही निश्चित मत रहा है और है भी कि - " विज्ञान असत्य नहीं है, अपितु विज्ञान के नाम पर जो आज विकृत रूप से प्रस्तुतीकरण हो रहा है, वह अनुचित हैं, क्योंकि उसमें कल्पना और अनुमानकी प्रमुखता अधिक है । अपने इन्हीं विचारो की पुष्टि में मुनिश्री ने एपोलो-८ की चन्द्रयात्रा पर लिखा था (१) - " एपोलो- चन्द्रमा की और गया और चन्द्र की १० प्रदक्षिणा करके वापस आ गया' यह बात समाचार पत्रों में पढी, तब एक प्रश्न उत्पन्न हुआ कि चन्द्रमा पृथ्वी के उपर है अथवा तिरछा ? यदि ऊंचा हो तो एपोलो कों पृथ्वी की भ्रमणकक्षा में से सीधा उपर जाना चाहिये, किन्तु समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए चित्रो और उनके सम्बन्ध मे दिये गये विवरणों के अनुसार - " पृथ्वी से १९० मील एपोलो- उपर जाकर पृथ्वी की प्रदक्षिणा करके भ्रमण कक्षा में से निकला और चन्द्र की और तिरछा २,३०,००० मील गया हैं ।" विज्ञान की पुस्तकों में सूर्य को केन्द्र में बताकर उसके आसपास सभी ग्रहों की कक्षाएं बताई गई है । उसमें पृथ्वी तीसरे-कममें है और चन्द्र पृथ्वी के उपग्रह के रुप में उसके आसपास घूमता है, अतः एपोलो पृथ्वी से तिरछा गया हो यह अधिक सम्भावित है । (२) - "तीसरे रॉकेट के विस्फोट के बाद एपोलो-प्रतिघंटे ३९३६० किलोमीटर की गति से चन्द्र की और प्रविष्ट हुआ ओर इस प्रकार ६३ घंटे में वह चन्द्र पर पहुचेमा ।' इस For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005569
Book TitleJambudwip Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages250
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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