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________________ भेद है । संसारी और मुक्त, संसारी आत्मा जीव भाव से मुक्त हो जाता है । यहां भी दो प्रकारका है स्थावर और त्रस । स्थावर- यह भी द्रष्टव्य है कि जैन-दर्शन में आत्मा पांच प्रकार के बतलाये गये है-पृथ्वी, जल, और जीव में भेद नहीं किया गया है । तेज, वायु वनस्पति । त्रस जीवों के भी जहां तक आत्मा के अस्तित्व का प्रश्न अनेक भेद बतलाये हैं जैसे दो इन्द्रिय, तीन है, नैदिक तथा जैन दार्शनिकोंने प्रायः इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, असंज्ञी, संज्ञी । इसके समान तर्क दिये हैं, चार्वाक तथा बौधो अतिरित २० प्ररुपणाओं के द्वारा जीवों का की आलोचना में भा उक्त दर्शन-पध्धतियों विशद विवेचन उपलब्ध हैं । उपर्युत आत्मा में समानताये हैं । किन्तु मोक्ष के स्वरुप के विशेषणों की व्याख्या निश्चय और व्य- एवं प्रक्रिया को लेकर पैदिक-दर्शनों एवं वहार नय के द्वारा की गई है । जिसका जैन-दर्शन में दूरगामी विभिन्नताएं है । यहाँ विवेचन करना सम्भव नहीं है। अपने ब्रह्मसूत्र भाष्य में आचार्य शंकरने यहां यह उल्लेखनीय है कि यद्यपि नैशेषिक, सांख्य आदि हिन्दू दर्शनों का भी आत्मा चैतन्य-स्वरूप है, लेकिन अनादिकाल सशक्त खण्डन किया है, केवल बौध्ध और से कर्मफल से संयुक्त होने के कारण वह जैन दर्शन का ही नहीं । यों मोक्षवाद की अशुद्ध है । इस अशुद्धि का पूर्ण-रुप से क्षय दृष्टि से अद्वैत वेदान्त और सांख्य में पर्याप्त हो जाने पर आत्मा अपने स्वाभाविक स्वरूप समानता है । बन्ध और मोक्ष आत्मा के को प्राप्त कर सकता है। संसारी आत्मा मूल रुप को नहीं छूते, उनकी प्रतीति अशुद्धि को क्रमशः अपने गुणों का विकास अध्यास या अविवेक के कारण है। यह कर अनन्त दर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्त सुख मान्यता सांख्य और अद्वैत वेदान्त दोनों में और अनन्त वीर्य रुप हो जाती है । अतः पाई जाती है । शकरने सांख्यका खंडन सिद्ध है कि मुक्त होने पर आत्मा का न मुख्यतया उसके प्रकृतिके जगत के कारणत्व तो अभाव हो जाता है, न किसी में वह को लेकर किया है । सांख्य मत जगत विलीन हो जाती है और न जड रुप हो का कारण प्रकृति को मानता है, अद्वैत जाती है । मोक्ष-अवस्था में वह सुरक्षा स्व- वेदान्त ब्रह्म को । किन्तु दोनों के मोक्षवाद रूप भी रहती है। में गहरी समानता है । बन्धन, मोक्ष, सुख उपसंहार दुःखादि मनोदशायें मूल आत्म-तत्त्व में नहीं जैसा कि हमने भूमिका में कहा था हैं । इसे प्रमाणित करने के लिए सांख्य तथा भारतीय दर्शन में आत्म-तत्त्व का विश्लेषण वेदान्त निम्न तर्क देते हैं। कोई वस्तु मुख्यतया मोक्षवाद की दृष्टि से किया गया है अपने स्वभाव को नहीं छोड़ सकती-उष्णता इसके फलस्वरूप कतिपय वैदिक-दर्शनों में को छोड़ कर अग्नि की सत्ता सम्भव नहीं आत्मा और जीव का भेद करते हुए जीव है । यदि सुखदुःख बन्धनादि आत्मा के तत्त्व को कम महत्त्व दिया गया है । इन स्वाभाविक धर्म है तो वह उनसे कभी दर्शनों के अनुसार मोक्षावस्था में आत्मा छुटकारा नहीं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005569
Book TitleJambudwip Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages250
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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