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________________ ज्ञाता, कर्ता, भोता निरव्यय तथा अनेक सिद्धान्त के आधार पर बौद्ध दर्शन में आत्मा मानते हैं४ । आत्मा को रामानुज ने सूक्ष्म अनित्य ही नहीं बल्कि क्षणिक माना गया (डॉ. राधाकृष्णन । भा. २, पृ. ६८२-६८४ । है। इसलिए बौद्धों का आत्मवाद सिद्धान्त मानकर ज्ञान की अपेक्षा व्यापक माना १ है। 'आत्मवाद' के नाम से प्रसिद्ध है। बौद्ध इस रामानुजने बद्ध, मुक्त और नित्य की अपेक्षा प्रकार की आत्मा में विश्वास नहीं करते थे जीव के तीन भेद बतलाये है । डॉ. न. कि. जो स्थायी हो। उन्होंने स्थायी तत्त्व को देवराज द्वारा सम्पादित भारतीय दर्शन २ में भ्रामक कहा था । शाश्वत आत्मा में विश्वास इसका विवेचन किया गया है। करने वालों की मजाक करते हुए उन्होंने निम्बार्काचायः, माध्वाचाय आदि कहा कि यह मान्यता कल्पित सुन्दर नारी के वेदान्तियों ने कुछ बातों को छोडकर प्रति अनुराग रखने की तरह हास्यास्पद है। रामानुज की तरह आत्म स्वरुप का विवे- मस्तिष्क के विचारों और संवेदना के अतिरिक्त चन किया है । डॉ राधाकृष्णन ने अपने आत्मा नामक कोई पदार्थ नहीं है । उपनिषद अपने भारतीय दर्शन (भाग २) में इन मतों वैदिक दर्शन और जैनदर्शन में मान्य आत्मा का विस्तार से वर्णन किया है. जो यहाँ के विषय में भगवान् बुद्ध चप दिखलाई पडते अपेक्षित नहीं है । है । दूसरे शब्दों में आत्म-तत्त्व सिद्धान्त की बौद्धों की व्याख्या यह प्रकट नहीं करती कि व बौद्ध दर्शन में आत्म-चिन्तन चौतन्य का आधारभूत कोई स्थायी आत्मा है । बौद्ध दर्शन में आत्म-तत्त्व का सिद्धान्त अनित्यवाद या क्षणिकवाद के सिद्धान्त पर धौद्ध दर्शन में आत्मा सम्बन्धी व्याख्या आधारित हैं। बौद्ध दर्शन का मतव्य है कि दो प्रकार से की है। (१) पचस्कन्धों के परिवर्तन या क्षणिकता ही यथार्थ सत् हैं। आधार पर और (२) नाम-रुप के आधार क्षणिकवाद का सिद्धान्त के प्रतिपादन भी पर । बौद्ध दर्शन के 'अनन्ता' को समझ लेने उन्होंने अपने प्रसिद्ध कारण-कार्य सिद्धान्त पर उनकी आत्मा सम्बन्धी विचारणा या तीत्य समुत्पाद के द्वारा सिद्ध किया है। व्याख्या को सरलता से समझा समझाया जा क्षणिकवाद सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक वस्तु सकता है। अनन्ता की व्याख्या विनयपिटक का अस्तित्व दाणिक हैं, कोई भी वस्तु दो के महावग्ग में आये हुए अनन्तलक्खन सुत्त क्षणो तक विद्यमान नहीं रहती हैं । अतः में उपलब्ध १ है । वहां पर रुप, वेदना, संज्ञा, कोई भी वस्तु स्थायी नहीं है। क्षणिकवाद संस्कार और विज्ञान इन पंचस्कन्धों को ४. ब्र. सू. श्री भाष्य, १. १. १, २. ३. अनत्त सिद्ध किया गया है। उन्हें ऐसा मानने में तर्क दिया गया है कि वे अनित्य ३१ । और भी द्रष्टव्य, भा. दर्शन एवं दुःख रुप है। पंचस्कन्धों को अनत्त १. बृ. सू. श्रा भाष्य, २३. २६ एवं ३१ । २. पृ. ५६७ । १-विनयपिटक, १. ८. २०-२३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005569
Book TitleJambudwip Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages250
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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