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________________ ७ सन्दर्भ ९. यस्त्वविज्ञानवान् भवत्यमनस्क-सदाऽशुचि । १. ताभिर्वहैनं सुकृताम् अलोकम् ।-ऋग्वेद न स तत्पदमाप्नोति संसारं चाधिगच्छति ॥ ___ -कठोपनिषद ३-६ (१०-१६-४) २. एतस्माद्वै यज्ञात्पुरुषो जायते । स यद्वा १०. भगवद् गीता (६-४०) अस्मिँल्लोके पुरुषोन्नमत्ति तदेनम मुष्मिँल्लोके ११. वही (४-५) प्रत्यत्ति । शतपथ ब्राह्मण (१२-१-१-१) १२. नारदीय पुराण, उत्तर भाग (२९-१८) ३. बृहदारण्यकोपनिषद् (४-४-५-६) १३. पद्मपुराण (२-८१-१२) ४. वही. (४-४-३) १४. गौतम धर्मसूत्र (१९-३-१०) ५. आपस्तम्बधर्मसूत्र (२-१-२-२-३) १५. भगवद्गीता, शान्तिपर्व (१५३-३८) ६. नाधमश्चरितो लोके सद्यः फलति गौरिव । १६. यदुत्तिष्ठति वर्णेभ्यो नृपाणां क्षयि तत्फलम् । शनैशवर्तमानस्तु कर्तुभूलानि कृन्तति । तपः षड्भागमक्षय्यं ददत्यारण्यका हि नः ॥ -मनुस्मृति (४-१६२) -अभिज्ञान शाकुन्तलम् २-१३ ७. वेदान्तसूत्र (३-१-१३-१६) १७. मनुस्मृति (५-१-६४) ८. . छीन्दोग्योपनिषद (५-१०-३) १८. कठोपनिषद् (५-६-७) R. मानव की बुद्धि की सीमायें काफी पर्याप्त होने पर भी भौतिकवाद के उन्माद में कमी कमी मानव अपने आपको प्रकृति के सनातन सत्यों का मार्मिक झाता बनने का दावा करता है । वर्तमान युग में विज्ञानवाद की चकाचौंध में समझदारी-विचारशीलता पर कुछ आवरण-सा आ जानेसे मानव की धूमिल धारणाएँ पनप कर मानव के प्राकृतिक विकास को अवरोध पहुंचा रही हैं । ३ . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005568
Book TitleJambudwip Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Pedhi
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages190
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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